उपन्यास >> फाँस फाँसविजय गौड़
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विभाजन की त्रासदी के बाद पुनर्निर्माण की प्रक्रिया और उसके समानान्तर चलती 'विकास' की गतिविधियों को इस उपन्यास में परिभाषित करते हैं.
युवा लेखक विजय गौड़ विभाजन की त्रासदी के बाद पुनर्निर्माण की प्रक्रिया और उसके समानान्तर चलती 'विकास' की गतिविधियों को इस उपन्यास में परिभाषित करते हैं. स्वातन्त्र्योत्तर देश में किसके हिस्से कितनी आज़ादी आयी, किसके हिस्से की रौशनी लूट ली गयी, चन्द प्रतिशत लोगों ने किस प्रकार अपार जनसमुदाय के अधिकारों का संहार किया और हाशिये के लोग किन साज़िशों के तहत ठिकाने लगा दिए गए--ऐसे जाने कितने सवाल हैं जो कथावस्तु में गूँजते रहते हैं. यथार्थ को व्यक्त करने के लिए लेखक निम्नवर्गीय जन-जीवन को रचना के केन्द्र में रखता है.
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