जैन साहित्य >> समराइच्चकहा (प्राकृत गद्य, संस्कृत छाया, हिन्दी अनुवाद) भाग 2 समराइच्चकहा (प्राकृत गद्य, संस्कृत छाया, हिन्दी अनुवाद) भाग 2हरिभद्र सूरि
|
0 |
प्रचलित भाषा में इसे नायक और प्रतिनायक के बीच जन्म-जन्मान्तरों के जीवन-संघर्षों की कथा का वर्णन करने वाला प्राकृत का एक महान उपन्यास कहा जा सकता है.
आचार्य हरिभद्र सूरि की, प्राकृत गद्य भाषा में निबद्ध एक आख्यानात्मक कृति है. प्रचलित भाषा में इसे नायक और प्रतिनायक के बीच जन्म-जन्मान्तरों के जीवन-संघर्षों की कथा का वर्णन करने वाला प्राकृत का एक महान उपन्यास कहा जा सकता है. मूल कथा के रूप में इसमें उज्जयिन्नी के राजा समरादित्य और प्रतिनायक अग्निशर्मा के नौ जन्मों (भवों) का वर्णन है. एक-एक जन्म की कथा एक-एक परिच्छेद में समाप्त होने से इसमें नौ भव या परिच्छेद हैं.
|