जैन साहित्य >> तत्त्वार्थराजवार्तिक (द्वितीय भाग) (संस्कृत, हिन्दी) तत्त्वार्थराजवार्तिक (द्वितीय भाग) (संस्कृत, हिन्दी)भट्ट अकलंक
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उमास्वामी कृत 'तत्त्वार्थसूत्र' के प्रत्येक सूत्र पर वार्तिक रूप में व्याख्या किये जाने के कारण इस महाग्रन्थ को 'तत्त्वार्थवार्तिक' कहा गया है.
उमास्वामी कृत 'तत्त्वार्थसूत्र' के प्रत्येक सूत्र पर वार्तिक रूप में व्याख्या किये जाने के कारण इस महाग्रन्थ को 'तत्त्वार्थवार्तिक' कहा गया है. ग्रन्थकार भट्ट अकलंकदेव ने सूत्रों पर वार्तिक ही नहीं रचा, वार्तिकों पर भाष्य भी लिखा है. इसका एक नाम 'राजवार्तिक' भी है. 'तत्त्वार्थवार्तिक' का मूल आधार आचार्य देवनन्दी पूज्यपाद की सर्वार्थसिद्धि है. 'तत्त्वार्थवार्तिक' में यों तो दर्शन-जगत के अनेक नए विषयों की चर्चा की गयी है, पर इसकी प्रमुख विशेषता है--इसमें चर्चित सभी विषयों के ऊहापोहों या मत-मतान्तरों के बीच समाधान के रूप में अनेकान्तवाद की प्रतिष्ठा करना.
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