जैन साहित्य >> योगसार-प्राभृत (संस्कृत, हिन्दी) योगसार-प्राभृत (संस्कृत, हिन्दी)आचार्य अमितगति
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पाहुड-ग्रंथों की परम्परा में दसवीं शताब्दी के प्रसिद्ध आचार्य अमितगति ने एक श्रेष्ठ शास्त्र की रचना की, जिसका नाम 'योगसागर-प्राभृत' है.
पाहुड-ग्रंथों की परम्परा में दसवीं शताब्दी के प्रसिद्ध आचार्य अमितगति ने एक श्रेष्ठ शास्त्र की रचना की, जिसका नाम 'योगसागर-प्राभृत' है. इसमें 540 श्लोकों में शुद्धात्म-चिन्तन, ध्यान तथा समाधि का सांगोपांग विवेचन किया गया है. स्वयं ग्रन्थकार एक महान योगी थे. अतः रचना के माध्यम से उन्होंने आत्मा को केन्द्रित कर आत्मानुभव की प्राप्ति, वास्तविक मोक्षमार्ग, तपश्चर्या अथवा सम्यक्चारित्र का प्रतिपादन सरल शब्दों में, किन्तु शास्त्रीय भाषा में प्रस्फुटित, ज्ञानगरिमा से मण्डित किया है.
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