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पंचास्तिकायसंग्रह (प्राकृत, संस्कृत, हिन्दी)

आचार्य कुन्दकुन्द

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 10499
आईएसबीएन :8126305124

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जिनागम की आनुपूर्वी में आचार्य कुन्दकुन्द प्रस्थापक आचार्य के रूप में दो हज़ार वर्षों से निरन्तर विश्रुत रहे हैं.

जिनागम की आनुपूर्वी में आचार्य कुन्दकुन्द प्रस्थापक आचार्य के रूप में दो हज़ार वर्षों से निरन्तर विश्रुत रहे हैं. उनकी सभी रचनाओं की भाँति प्रस्तुत रचना भी शौरसेनी प्राकृत में निबद्ध है. उनके पंच परमागमों में विशेष रूप से तथा अन्य सभी 'पाहुड' रचनाओं में अध्यात्म और जैन सिद्धान्त का समन्वय भलीभाँति लक्षित होता है. इसकी तात्पर्यवृत्ति टीका आचार्य जयसेन (बारहवीं शताब्दी) द्वारा रचित प्रामाणिक व्याख्या है जो मुख्यतः भाषा, भाव और सिद्धान्त को ध्यान में रखकर सम्पादित की गयी है.

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