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जैन साहित्य >> करलक्खण

करलक्खण

प्रफुल्ल कुमार मोदी

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :48
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 10520
आईएसबीएन :8126312475

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मनुष्य में अपने भविष्य जानने की इच्छा उतनी ही पुरातन है जितना कि स्वयं मनुष्य, और….

मनुष्य में अपने भविष्य जानने की इच्छा उतनी ही पुरातन है जितना कि स्वयं मनुष्य, और यह उतनी ही बलवती होती जाती है, ज्यों-ज्यों मनुष्य का वातावरण हर तरफ अनिश्चित-सा दिखता है. प्रति मनुष्य में आश्चर्य रूप से अति भिन्न पाई जाने वाली हथेलियाँ ही भविष्य-ज्ञान पद्धति का आधार हैं और इसे सामुद्रिक (हस्तरेखा) विद्या कहते हैं. 'करलक्खण', इस सामुद्रिक शास्त्र का, भविष्य कहने की पद्धति के रूप में, इस विषय का प्रतिपादन करने वाली पुस्तक है.

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