सामाजिक विमर्श >> मुख्यधारा और दलित साहित्य मुख्यधारा और दलित साहित्यओमप्रकाश वाल्मीकि
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आज के दलित चिंतकों में प्रमुख ओमप्रकाश वाल्मीकि की यह पुस्तक बताती है कि भारतीय जीवन में ‘जाति’ के अस्तित्व ने सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, शैक्षणिक जीवन को किस तरह प्रभावित किया है। साहित्य भी इससे अछूता नहीं है। साहित्य में जहां पिछले कुछ वर्षो में न ‘ब लिखने के कारण’ पर बहस छिड़ी रही है, वहीं श्री वाल्मीकि ने ‘मेरे लिखने के कारण’ लिखकर समाज की आंखें खोलने की कोशिश की है। उनकी रचना-प्रक्रिया में कैसे ‘अस्मिता की तलाश’ एक बड़ा सरोकार बनता है, दलित चेतना और हिंदी कथा साहित्य का संबंध कैसा रहा है, दलित नैतिकता और वर्चस्ववाद के बीच संघर्ष का रूप क्या है और भारतीय जाति-व्यवस्था में दलित-उत्पीड़न के चलते कैसी गलत परंपरा का विकास हुआ, यह इस गंभीर विचारपरक पुस्तक के जरिये सामने आया है।
लेखक ने जहां बेगार प्रथा को एक सामाजिक अपराध के रूप में देखा है, वहीं स्त्री नैतिकता के तालिबानीकरण और धर्म की प्रासंगिकता व ‘जाति’ से मुक्ति के प्रश्न पर भी तार्किक दृष्टि से विचार करते हुए वह सार्थक बहस का आमंत्रण देता है।
‘1857 और हिंदी नवजागर’ से ‘जूठन और दलित विमर्श’ तक विचार करते हुए ओमप्रकाश वाल्मीकि कहीं भी निराशावादी नहीं नजर आते। समूचे परिदृश्य में दलित साहित्य और उसकी सार्थकता पर वह न सिर्फ विचार करते हैं, बल्कि अपने विचारों के प्रति आत्मीय सहमति का माहौल भी बनाते हैं। मुख्यधारा और दलित साहित्य के संघर्ष को समझने की दृष्टि से यह एक स्थायी महत्त्व की पुस्तक है। इस पुस्तक में अनुभव और सृजन के रचनात्मक बिंदुओं पर पहली बार खुलकर ईमानदार चिंतन किया गया है।
अनुक्रम
★ भूमिका
★ मेरे लिखने का कारण
★ मेरी रचना प्रक्रिया : अस्मिता की तलाश
★ मुख्यधारा के यथार्थ
★ दलित चेतना और हिंदी कथा साहित्य
★ दलित नैतिकता बनाम वर्चस्ववाद
★ दलितों के प्रति घोर अमानवीय व्यवहार और दोहरे मापदंड
★ दलित साहित्य और प्रेम का महत्त्व
★ भारतीय जाति-व्यवस्था और दलित-उत्पीड़न
★ बेगार-प्रथा : एक सामाजिक अपराध
★ स्त्री नैतिकता का तालिबानीकरण
★ धर्म की प्रासंगिकता के सवाल
★ जाति ! से मुक्ति का सवाल
★ 1857 और हिंदी नवजागरण
★ प्रेमचंद : संदर्भ दलित विमर्श
★ प्रेमचंद की संवेदना का विस्तार : समकालीनता का संदर्भ-बिंदु
★ समकालीनता की अवधारणा : कुछ प्रश्न और समस्याएं
★ जूठन और दलित-विमर्श
★ बाल साहित्य : मेरे अनुभव
★ उम्मीद अभी बाकी है….
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