संस्मरण >> वृद्धावस्था का सच वृद्धावस्था का सचविमला लाल
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घर से बेघर होकर वृद्धाओं तक पहुंचने वाले बेबस वृद्धों के मजूबूरी-भरे सफर की यह दास्तान कोई हवाई कयास नहीं, कोरी कल्पना या गप भी नहीं, बल्कि आज अपसंस्कृति के मारे अपाहिज होते हमारे समाज के कटु यथार्थ को झेलते, कराहते, नित-नित टूटते जीवनों की कड़वी दास्तान है।
इस स्थिति का जिम्मेदार कौन है ? आज का युवावर्ग ? या समय से पीछे छूटते स्वयं वृद्ध ? या दोनों ? या शायद दोनों में से कोई नहीं-तो फिर कौन ? इसका जवाब कोई भी एक शब्द या वाक्य में नहीं दे सकता। यह नित्य विकृत होती सामाजिक- सांस्कृतिक व्यवस्था के थपेड़े में फंसी युवा और वृद्ध पीढ़ियों की दारुण गाथा है और इस पर मानवीय संवेदना के साथ गहन विचारों को प्रस्तुत करने वाली लेखिका लंबे अरसे तक अत्यंत निकट से उनको समझती रही हैं।
उन्होंने बड़े ही अर्थ-गांभीर्य के साथ जो बिंदु प्रस्तुत किए हैं। वे समाज और युवावर्ग के लिए तो विचारणीय है ही-चौथेपन के शिकार एवं वरिष्ठ नागरिकों के लिए भी विशेष रूप से उपयोगी एवं चिंतनीय हैं।
हम इस विश्वास के साथ हिंदी में पहली बार वृद्ध नागरिकों की समस्याओं पर यह पुस्तक प्रस्तुत कर रहे है कि यह एक विकट मानवीय समस्या के लिए रचनात्मक समाधान की भूमिका बनाएगी !
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