उपन्यास >> चलती चक्की चलती चक्कीसूर्यनाथ सिंह
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सुरक्षा के नाम पर दुनिया भर में पुलिस और सुरक्षा बलों को मिले अधिकारों का परिणाम क्या रहा है ? क्या ये गुंडागर्दी को ही अपना हक नहीं समझने लगे हैं ? किसी को भी श्वेतानंद की तरह शक की बिना पर पकड़ लेते हैं और करने लगते हैं उस पर अत्याचार।
पत्रकार-कथाकार सूर्यनाथ सिंह के पास कथा के औपन्यासिक अनुभव हैं जिन्हें उन्होंने “चलती चाकी’’ में बखूबी इस्तेमाल किया है। उपन्यास का श्वेतानंद जो कुछ सोचता है, उसे एक आम नागरिक की सोच कहा जा सकता है; “कश्मीर से बेहतर दूसरे इलाके कहां हैं ! पूरा पूर्वोत्तर दहशत में हैं। नक्सलवाद पर काबू पाने के लिए देश के विभिन्न इलाकों में पुलिसिया दमन जारी है। बेगुनाह लोग ही तो शिकार होते हैं हर जगह...”
दहशतगर्द ठहरा दिए गए श्वेतानंद की गिरफ्तारी और उस पर पुलिसिया अत्याचार से प्रारम्भ इस उपन्यास की कथा पाठक को अपने साथ बहाए ले चलती है।
कबीर की वाणी का प्रवेश इस कथा में स्वतःस्फूर्त ढंग से हुआ है। यह बताता है कि अज्ञान उतनी बुरी चीज नहीं जितना कुज्ञान। कबीर, सामान्यजन से भी ज्यादा साधु-संन्यासी, पंडित-मुल्लाओं को सम्बोधित करते हैं, तो इसके अपने तर्क भी हैं।
व्यक्ति की नहीं, यह हमारे समय की ज्वलन्त और पठनीय कथा है- ‘चलती चाकी’।
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