नारी विमर्श >> मौसम बदलने की आहट मौसम बदलने की आहटअनामिका
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चर्चित कवि-कथाकार-चिंतक अनामिका की पुस्तक ‘मौसम बदलने की आहट’ पारंपरिक स्त्री-विमर्श से हटकर एक ऐसी कोशिश है, जहां लेखिका इतिहास और वर्तमान में एक समीचीन चिंतन करती नजर आती हैं। वह अपनी बात एक अलग ही अंदाज में करते हुए उस राजनीतिक षड्यंत्र को भी पहचान लेती हैं जो स्त्रीवाद को निरे प्रतिक्रियावाद से जोड़कर देखता है। उनके लिए स्त्री आंदोलन ममता का विस्तार है।
स्त्री-साहित्य को वह खुरदरी सतहों के भीतर छिपे जल तत्व का सरस संसाधन मानती हैं तो उपन्यास लेखन में महिलाओं की भागीदारी पर गंभीर चिंतन भी करती हैं। यहां समन्वित नारीवाद और भारतीय देवियों को भी विचार का विषय बनाया गया है और स्त्रीत्व और भाषा को भी।
अनामिका, मिथकों, सामाजिक परंपराओं के साथ ही स्त्री-कथाकारों की स्त्रियों पर चर्चा करते हुए नाइजीरिया की जनाब अल्कली से आधुनिक हिन्दी रचनाकारों तक वृहद विमर्श करती हैं।
अच्छी बात यह है कि अनामिका का आलोचक प्रायः उन अनछुए पहलुओं पर पूरे मन से बात करता है, जिन्हें चर्चा योग्य ही नहीं समझा जाता था। यही कारण है कि आत्मशक्ति विकसित करने में स्त्रियों के आपसी संबंधों की भूमिका के महत्त्व को पहचाना गया है।
जीवन-प्रसंगों से जुड़ा यह विवेचन ही ‘मौसम बदलने की आहट’ है जिसे हर कोई सुनना-गुनना चाहेगा।
अनुक्रम
- मौसम बदलने की आहट
- बंधन बदलते रिश्ते का
- स्त्री भाषा की पराआधुनिकता : संभावना और चुनौतियां
- आपका नहीं, आप सबका बंटी : साझा मातृत्व की इत्ती कहानियां
- मुक्त करती हूं तुम्हें मेरे भीषण भय
- कुछ समसामयिक प्रकाशन : स्त्री सापेक्ष छिटपुट टिप्पणियां
- समन्वित नारीवाद और भारतीय देवियां
- स्त्रीत्त और भाषा
- स्त्री कथाकारों की स्त्रियां
- तीसरी दुनिया : एक स्त्री का अंतर्जगत बनाम बहिर्जगत
- संक्रमणशील भारतीय समाज और स्त्री : कुछ स्थितियां
- उत्तरवांद और साहित्याध्ययन की चुनौतियां
- बीज शब्द
- पुस्तक सूची
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