सामाजिक विमर्श >> आदिवासी अस्मिता का संकट आदिवासी अस्मिता का संकटरमणिका गुप्ता
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वरिष्ठ साहित्यकार और सम्पादक रमणिका गुप्ता ने जहां युद्धरत आम आदमी की अलख को जगाया, वहीं आदिवासी अस्मिता के संकट के सवाल को भी पूरी गम्भीरता से उठाया।
उनकी यह पुस्तक ‘आदिवासी अस्मिता का संकट’ हिन्दी में ही नहीं, किसी भी भारतीय भाषा में उपलब्ध होने वाली ऐसी पहली पुस्तक़ है जो इस प्रश्न पर ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक और वर्तमान सन्दर्भो में पूरी गम्भीरता से विचार करती है। यह दूर से देखने वाला नजरिया नहीं, आत्मीय दृष्टि से इस संकट और आदिवासी अस्मिता को पहचानने की ईमानदार कोशिश है।
रमणिका गुप्ता सीधे प्रश्न उठाती हैं कि आदिवासियों को जंगलों पर निर्भर कौम बनाकर सभ्यता से बाहर करते हुए उनके योगदान को नकारा क्यों गया है ? वह न सिर्फ उसकी उपलब्धियों को सामने रखती हैं, उस चाल का खुलासा भी करती हैं जो उन्हें दरकिनार किए जा रही है।
कहना जरूरी है कि रमणिका गुप्ता की यह पुस्तक आदिवासियों के प्रति पाठकों में आत्मीयता पैदा करते हुए उन्हें उन प्रश्नों से जोड़ती है जो प्रायः हाशिए पर छोड़ दिए जाते हैं।
आदिवासी विमर्श की श्रृंखला में यह एक अत्यंत आवश्यक संग्रहणीय पुस्तक है जिसे हर सुधी अध्येता एवं पुस्तकालय के संग्रह में स्थान मिलना चाहिए।
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