गीता प्रेस, गोरखपुर >> परमपिता से प्रार्थना परमपिता से प्रार्थनास्वामी रामसुखदास
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प्रस्तुत पुस्तक में परमपिता से प्रार्थना कैसे करनी चाहिए के विषय में बताया गया है।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
प्रार्थना और शरणागति
भगवान् से प्रार्थना करना और उनके शरण होना-ये दो बातें तत्काल सिद्धि
देने वाली हैं। कोई आफत आ जाय, दु:ख आ जाय, सन्ताप हो जाय, उलझन हो जाय तो
आर्तभाव से ‘हे नाथ ! हे प्रभो !’ कहकर भगवान् को
पुकारे,
उनसे प्रार्थना करे तो तत्काल लाभ होता है।
परमपिता से प्रार्थना
जीवमात्र भगवान् का ही अंश है-‘ममैवांशो जीवलोके’
(गीता
15/7), ईस्वर अंस जीव अबिनासी। चेतन अमल सहज सुख रासी।।’ (मानस,
उत्तर. 117/1)। अत: भगवान् पिता हैं और जीवमात्र उनका पुत्र है। पिता का
स्वाभाविक ही पुत्र में प्रेम, अपनापन होता है। परन्तु जीव अपने परमपिता
को भूलकर माया के वश में हो जाता है-
‘सो मायाबस भयउ गोसाईं। बँध्यो कीर मरकट की नाईं।।’ (मानस, उत्तर. 117/2)। अब वह अपने परमपिता भगवान् की कृपा से ही इस माया से छूट सकता है। हमारे परमपिता सर्वसमर्थ हैं। हमें माया के वश से छुड़ाने के लिये उनके समान कोई दूसरा है ही नहीं। इसलिये हमें अपने परमपिता से प्रार्थना करनी चाहिये।
हे परमपिता ! हे परमेश्वर ! आप इस माया से मेरे को छुड़ाओ। मैं अपनी शक्ति से छूट नहीं सकता। आप कहते हैं कि तुम्हारे में शक्ति है, पर हमें ऐसी शक्ति दीखती नहीं। आप में अपार, अनन्त, असीम शक्ति है, जिसका कोई पारावार नहीं है। ऐसी शक्ति के होते हुए मैं माया के परवश हो गया ! आप जरा सोचो। आप पिता हो न ? पिता को सोचना चाहिये न ? पुत्र की सहायता पिता ही करेगा, और कौन करेगा ? दूसरों को दया क्यों आयेगी ? परमपिता को ही तो दया आयेगी। इसलिये दया करके मेरे को बचाओ प्रभो ! आपके होकर किसको कहें ? आपसे अधिक समर्थ कौन है ? आपकी दृष्टि में कोई हो तो बता दो।
‘सो मायाबस भयउ गोसाईं। बँध्यो कीर मरकट की नाईं।।’ (मानस, उत्तर. 117/2)। अब वह अपने परमपिता भगवान् की कृपा से ही इस माया से छूट सकता है। हमारे परमपिता सर्वसमर्थ हैं। हमें माया के वश से छुड़ाने के लिये उनके समान कोई दूसरा है ही नहीं। इसलिये हमें अपने परमपिता से प्रार्थना करनी चाहिये।
हे परमपिता ! हे परमेश्वर ! आप इस माया से मेरे को छुड़ाओ। मैं अपनी शक्ति से छूट नहीं सकता। आप कहते हैं कि तुम्हारे में शक्ति है, पर हमें ऐसी शक्ति दीखती नहीं। आप में अपार, अनन्त, असीम शक्ति है, जिसका कोई पारावार नहीं है। ऐसी शक्ति के होते हुए मैं माया के परवश हो गया ! आप जरा सोचो। आप पिता हो न ? पिता को सोचना चाहिये न ? पुत्र की सहायता पिता ही करेगा, और कौन करेगा ? दूसरों को दया क्यों आयेगी ? परमपिता को ही तो दया आयेगी। इसलिये दया करके मेरे को बचाओ प्रभो ! आपके होकर किसको कहें ? आपसे अधिक समर्थ कौन है ? आपकी दृष्टि में कोई हो तो बता दो।
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