गीता प्रेस, गोरखपुर >> नित्य स्तुति और प्रार्थना नित्य स्तुति और प्रार्थनास्वामी रामसुखदास
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इस पुस्तक में नित्य स्तुति और प्रार्थना के विषय में बताया गया है।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
पञ्चामृत
हम भगवान के ही हैं।
हम जहाँ भी रहते हैं, भगवान् के ही दरबार में रहते हैं
हम जो भी शुभ काम करते हैं, भगवान् का ही काम करते हैं।
शुद्ध-सात्त्विक जो भी पाते हैं, भगवान का ही प्रसाद पाते है।
भगवान के दिये प्रसाद से भगवान् के ही जनों की सेवा करते हैं।
हम जहाँ भी रहते हैं, भगवान् के ही दरबार में रहते हैं
हम जो भी शुभ काम करते हैं, भगवान् का ही काम करते हैं।
शुद्ध-सात्त्विक जो भी पाते हैं, भगवान का ही प्रसाद पाते है।
भगवान के दिये प्रसाद से भगवान् के ही जनों की सेवा करते हैं।
नित्यस्तुतिः
गजाननं भूतगणादिसेवितं
कपित्थजम्बूफलचारुभक्षणम्।
उमासुतं शोकविनाशकारकं
नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।।
कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः
पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेताः।
यच्छेयः स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे
शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम्।
कपित्थजम्बूफलचारुभक्षणम्।
उमासुतं शोकविनाशकारकं
नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।।
कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः
पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेताः।
यच्छेयः स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे
शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम्।
(गीता 2/7)
कविं पुराणमनुशासितार-
मणोरणीयांसमनुस्मरेद्यः।
सर्वस्य धातारमचिन्त्यरूप-
मादित्यवर्णं तमसः परस्तात्।।
मणोरणीयांसमनुस्मरेद्यः।
सर्वस्य धातारमचिन्त्यरूप-
मादित्यवर्णं तमसः परस्तात्।।
(8/9)
जो गज के मुख वालें हैं, भूतगण आदिके द्वारा सेवित हैं, कैथ और जामुन के
फलों का बड़े सुन्दर ढंग से भक्षण करनेवाले हैं, शोक का विनाश करनेवाले
हैं और भगवती उमाके पुत्र हैं, उन विघ्नेश्वर गणेशजी के चरणकमलों में मैं
प्रणाम करता हूँ।
कायरता के दोषसे उपहत स्वभाववाला और धर्म विषयमें मोहित। अन्तःकरणवाला मैं आपसे पूछता हूँ कि जो निश्चित श्रेय हो वह मेरे लिए कहिए। मैं आपका शिष्य हूँ। आपके शरण हुए मेरे को शिक्षा दीजिये।
जो सर्वज्ञ, पुराण, शासन करनेवाला, सूक्ष्म-से-सूक्ष्म, सबका धारण-पोषण करनेवाला, अज्ञानसे अत्यन्त परे, सूर्य की तरह प्रकाश-स्वरूप—ऐसे अचिन्त्य स्वरूप का चिन्तन करता है।
कायरता के दोषसे उपहत स्वभाववाला और धर्म विषयमें मोहित। अन्तःकरणवाला मैं आपसे पूछता हूँ कि जो निश्चित श्रेय हो वह मेरे लिए कहिए। मैं आपका शिष्य हूँ। आपके शरण हुए मेरे को शिक्षा दीजिये।
जो सर्वज्ञ, पुराण, शासन करनेवाला, सूक्ष्म-से-सूक्ष्म, सबका धारण-पोषण करनेवाला, अज्ञानसे अत्यन्त परे, सूर्य की तरह प्रकाश-स्वरूप—ऐसे अचिन्त्य स्वरूप का चिन्तन करता है।
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