नई पुस्तकें >> आपकमाई आपकमाईस्वानन्द किरकिरे
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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
इन कविताओं में अपने समय का वह चेहरा है जिसे देखा ही नहीं पढ़ा भी जा सकता है, और पढ़ा ही नहीं गाया भी जा सकता है। इन कविताओं में प्रेम है तो उत्स और उत्तंग के लिए, नहीं है तो निराशा या अँधेरे को इबारत की तरह रचा गया है - कि रचने की अपनी आँच होती है, कि आँच जिसकी रोशनी दूर तक जाती है। इन कविताओं में वह छुआ-अनछुआ बोलता है, वह देखा-अनदेखा भी जो जीवन से बाहर न ही अतिरिक्त, जिसे जीते हैं सीते हैं; और अगर जल की तरह रीतते भी हैं तो भाषा में उसकी संगत को रचते हुए। ये कविताएँ ‘आपकमाई’ हैं इसलिए अपने रंग में अविस्मरणीय और अद्भुत हैं।
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