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उजली नगरी चतुर राजा

मन्नू भंडारी

प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2013
पृष्ठ :195
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 11036
आईएसबीएन :9788183616331

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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

‘उजली नगरी चतुर राजा’ यशस्वी कथाकार मन्नू भंडारी की नई नाट्य कृति है। सामाजिक विसंगतियों, विरूपताओं व अव्यवस्था का विरोध उनकी अनेक रचनाओं का केन्द्रीय स्वर रहा है। इस सन्दर्भ में उनके अत्यन्त चर्चित उपन्यास ‘महाभोज’ का स्मरण किया जा सकता है। प्रस्तुत नाटक सत्ता और व्यवस्था में गहरे तक पैठ चुके भ्रष्टाचार के विरुद्ध जन-आक्रोश को अभिव्यक्ति देता है। समकालीन जीवन की अनेक स्थितियाँ और घटनाएँ इसमें अनुभव की जा सकती हैं।

इस नाटक का शीर्षक भारतेन्दु हरिश्चन्द्र कृत ‘अंधेर नगरी चौपट राजा’ पर एक रचनात्मक टिप्पणी है। उजास व चतुराई जैसे शब्दों का एक भिन्न अर्थ मन्नू भंडारी ने रेखांकित किया है। व्यंजना यह है कि आज अनेक सकारात्मक शब्दों, प्रतीकों और धारणाओं को निहित स्वार्थ ने भ्रष्ट कर दिया है।

आठ दृश्यों में विभक्त ‘उजली नगरी चतुर राजा’ के पात्रों राजा, बड़ा मंत्री, छोटा मंत्री, खजांची, नगर मंत्री, खोजी और हिम्मती आदि में परिचित चरित्रों की अनुगूंज है। लोकतंत्र, चुनाव, महँगाई, भ्रष्टाचार, असुरक्षा आदि मुद्दों पर यह नाटक व्यापक विमर्श का प्रस्ताव रखता है। जन प्रतिरोध के स्वर इन शब्दों में मुखर हैं - ‘न करेगा अब कोई फरियाद, न फैलाएगा राजा के आगे हाथ !

जो अधिकार हमारे हैं, उन्हें तो हम लेके रहेंगे।’ प्रासंगिक व प्रभावी कथ्य के साथ भाषा और शिल्प की दृष्टि से भी यह नाटक उल्लेखनीय है। मौलिक नाट्यालेखों की कमी को पूरा करती प्रस्तुत कृति पाठकों व रंगकर्मियों के लिए समान रूप से महत्त्वपूर्ण है।

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