गीता प्रेस, गोरखपुर >> स्वाधीन कैसे बनें स्वाधीन कैसे बनेंस्वामी रामसुखदास
|
1 पाठकों को प्रिय 52 पाठक हैं |
परमश्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज द्वारा दिये गये कुछ प्रवचनों का संग्रह ...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
।।श्रीहरि:।।
नम्र निवेदन
परमश्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज द्वारा दिये गये कुछ
प्रवचनों का संग्रह प्रकाशित किया जा रहा है। ये प्रवचन साधक के लिये बहुत
ही उपयोगी हैं। परमात्म प्राप्ति में मुख्य बाधा दूर करने के सुगम-से-सुगम
अनेक उपाय इन प्रवचनों में समझाये गये हैं। साधक अपनी रुचि के अनुसार कोई
भी उपाय काम में लेकर सुगमता से परम लक्ष्य की प्राप्ति कर सकते हैं।
पारमार्थिक रुचि रखने वाले सभी साधकों के लिये यह सुनहरा अवसर है कि वे इन प्रवचनों को समझ-समझकर पढ़ें और अपने काम में लाकर परमलाभ लें।
पारमार्थिक रुचि रखने वाले सभी साधकों के लिये यह सुनहरा अवसर है कि वे इन प्रवचनों को समझ-समझकर पढ़ें और अपने काम में लाकर परमलाभ लें।
विनीत
प्रकाशक
प्रकाशक
।।श्रीहरि:।।
पराधीनता से छूटने का उपाय
(सींथल में 15-4-86 को दिया हुआ प्रवचन)
पराधीनता सबको बुरी लगती है। पराधीन मनुष्य को स्वप्रेम भी सुख नहीं
मिलता-‘पराधीन सपनेहुँ सुखु नाहीं’ (मानस 1/102/3)।
ऐसा होने
पर भी मनुष्य दूसरे से सुख चाहता है, दूसरे से मान चाहता है, दूसरे से
प्रशंसा चाहता है, दूसरे से लाभ चाहता है-यह कितने आश्चर्य की बात है !
वस्तु से, व्यक्ति से परस्थिति से, घटना से, अवस्था से, जो सुख चाहता है,
आराम चाहता है, लाभ चाहता है, उसको पराधीन होना ही पड़ेगा, बच नहीं सकता,
चाहे ब्रह्मा हो, इन्द्र हो, कोई भी हो। मैं तो यहाँ तक कहता हूँ कि
भगवान् भी बच नहीं सकते। जो दूसरों से कुछ भी चाहता है, वह पराधीन होगा
ही।
परमात्मा को चाहने वाले पराधीन नहीं होता; क्योंकि परमात्मा दूसरे नहीं हैं। जीव तो परमात्मा का साक्षात् अंश है। परन्तु परमात्मा के सिवाय दूसरी चीज हम चाहेंगे तो पराधीन हो जायँगे; क्योंकि परमात्मा के सिवाय दूसरी चीज अपनी है नहीं। दूसरी चीज की चाहना न होने से ही परमात्मा की चाहना पैदा होती है। अगर दूसरी चीज की चाहना न रहे तो परमात्मा-प्राप्ति हो जाय।
परमात्मा को चाहने वाले पराधीन नहीं होता; क्योंकि परमात्मा दूसरे नहीं हैं। जीव तो परमात्मा का साक्षात् अंश है। परन्तु परमात्मा के सिवाय दूसरी चीज हम चाहेंगे तो पराधीन हो जायँगे; क्योंकि परमात्मा के सिवाय दूसरी चीज अपनी है नहीं। दूसरी चीज की चाहना न होने से ही परमात्मा की चाहना पैदा होती है। अगर दूसरी चीज की चाहना न रहे तो परमात्मा-प्राप्ति हो जाय।
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book