गीता प्रेस, गोरखपुर >> किसान और गाय किसान और गायस्वामी रामसुखदास
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प्रस्तुत है पुस्तक किसान और गाय किसानों के लिए शिक्षा एवं गाय की महत्ता और आवश्यकता...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
किसानों के लिये शिक्षा
खेती करनेवाले तथा कराने वाले—दोनों के लिये कुछ उपयोगी बातें लिखी
जाती हैं। मेरी प्रार्थना है कि इन बातों पर विशेष ध्यान दें।
खेती में हिंसा
लोगों के मन में यह बात जँची हुई हैं कि खेती के जन्तु, कीड़े-मकोड़े मारने से अनाज बहुत पैदा होता है। यह बिलकुल वहम की बात है। पहले ऐसी हत्या नहीं हुआ करती थी। पहले इतनी टिड्डी आया करती थीं कि जैसे बादल हों और जमीन पर छाया हो जाती थी ! उस समय लोग कहते थे कि इस साल वर्षा होगी और फसल अच्छी होगी; क्योंकि भगवान् हमारे लिये नहीं करेंगे, पर इन जीवों के लिये तो करेंगे ही। इसलिये जिस साल टिड्डी आती थीं, उस साल अकाल नहीं पड़ता था। वे तीन वर्ष लगातार आती थीं, फिर बारह वर्ष तक हीं आतीं। बारह वर्ष के बाद फिर आती थीं। अब उस टिड्डी को मारकर नष्ट कर दिया ! खेतों में तरह-तरह की दवाइयाँ छिड़कते हैं, जिससे जन्तु मर जायँ। पहले चौमासे के दिनों में दीपक पर जितने जन्तु आते थे, उतने अब नहीं आते। परन्तु जन्तुओं को मारने से कभी भला नहीं होता। पहले गेहूँ-बाजरा के क्या भाव थे और आज क्या भाव हैं ? अगर जन्तुओं को मारने से अनाज ज्यादा पैदा होता तो फिर आज अनाज सस्ता होना चाहिये। परन्तु अनाज महँगा क्यों हो गया ? हत्या के कारण हो गया। अगर आप हत्या न करें तो इससे नुकसान नहीं होता।
आज आप मनुष्य हो, इसलिये जानवरों को मारते हो। परन्तु कभी आपकी भी जानवर बनने की बारी आयेगी और वे मनुष्य बनेंगे तो वे आपको मारेंगे। किये हुए कर्मों का फल अवश्य भोगना पड़ता है—
खेती में हिंसा
लोगों के मन में यह बात जँची हुई हैं कि खेती के जन्तु, कीड़े-मकोड़े मारने से अनाज बहुत पैदा होता है। यह बिलकुल वहम की बात है। पहले ऐसी हत्या नहीं हुआ करती थी। पहले इतनी टिड्डी आया करती थीं कि जैसे बादल हों और जमीन पर छाया हो जाती थी ! उस समय लोग कहते थे कि इस साल वर्षा होगी और फसल अच्छी होगी; क्योंकि भगवान् हमारे लिये नहीं करेंगे, पर इन जीवों के लिये तो करेंगे ही। इसलिये जिस साल टिड्डी आती थीं, उस साल अकाल नहीं पड़ता था। वे तीन वर्ष लगातार आती थीं, फिर बारह वर्ष तक हीं आतीं। बारह वर्ष के बाद फिर आती थीं। अब उस टिड्डी को मारकर नष्ट कर दिया ! खेतों में तरह-तरह की दवाइयाँ छिड़कते हैं, जिससे जन्तु मर जायँ। पहले चौमासे के दिनों में दीपक पर जितने जन्तु आते थे, उतने अब नहीं आते। परन्तु जन्तुओं को मारने से कभी भला नहीं होता। पहले गेहूँ-बाजरा के क्या भाव थे और आज क्या भाव हैं ? अगर जन्तुओं को मारने से अनाज ज्यादा पैदा होता तो फिर आज अनाज सस्ता होना चाहिये। परन्तु अनाज महँगा क्यों हो गया ? हत्या के कारण हो गया। अगर आप हत्या न करें तो इससे नुकसान नहीं होता।
आज आप मनुष्य हो, इसलिये जानवरों को मारते हो। परन्तु कभी आपकी भी जानवर बनने की बारी आयेगी और वे मनुष्य बनेंगे तो वे आपको मारेंगे। किये हुए कर्मों का फल अवश्य भोगना पड़ता है—
अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम्।
नाभुक्तं क्षीयते कर्म जन्मकोटिशतैरपि।।
नाभुक्तं क्षीयते कर्म जन्मकोटिशतैरपि।।
आप बड़े होकर छोटे जीवों को मारते हो और बड़ों से कृपा चाहते हो, क्या यह
न्याय है ? सन्त-महात्मा हमारे पर कृपा करें, भगवान् हमारे पर कृपा करें,
बड़े आदमी हमारे पर कृपा करें—ऐसा चाहने का हक है आपका ?
अगर आप छोटों पर कृपा करो तो बड़े भी आपपर कृपा करेंगे, नहीं तो आपको कृपा माँगने का कोई हक नहीं है। जो छोटों पर कृपा नहीं करते, उनपर बड़ों को कृपा नहीं करनी चाहिये। परन्तु बड़े छोटों पर कृपा करते ही रहते हैं, इसलिये आपको भी छोटों पर कृपा करते रहना चाहिये।
आप तरह-तरह की दवाइयाँ खरीदकर कीड़ों को मारते हो, क्या यह बड़ों का काम है, समर्थ तो वह है, जो दूसरों को भी समर्थ बना दे। जो दूसरों का नाश करे, वह समर्थ नहीं है, प्रत्युत महान् असमर्थ है ! लोमड़ी अगर ब्याई हुई हो और कोई आदमी पास में आ जाय तो वह पकड़ कर फाड़ देती है; क्योंकि उसके मन में भय रहता है कि मेरे बच्चों का कहीं नुकसान न हो जाय ! तो क्या लोमड़ी समर्थ हो गयी ? समर्थ वह है, जो सबकी रक्षा करे, सबका पालन करे। आपको भगवान ने बुद्धि दी है, खेत दिये हैं, जमीन दी है, उसमें अनाज पैदा करो। यह दूसरों को मारने के लिये नहीं दी है।
अगर आप छोटों पर कृपा करो तो बड़े भी आपपर कृपा करेंगे, नहीं तो आपको कृपा माँगने का कोई हक नहीं है। जो छोटों पर कृपा नहीं करते, उनपर बड़ों को कृपा नहीं करनी चाहिये। परन्तु बड़े छोटों पर कृपा करते ही रहते हैं, इसलिये आपको भी छोटों पर कृपा करते रहना चाहिये।
आप तरह-तरह की दवाइयाँ खरीदकर कीड़ों को मारते हो, क्या यह बड़ों का काम है, समर्थ तो वह है, जो दूसरों को भी समर्थ बना दे। जो दूसरों का नाश करे, वह समर्थ नहीं है, प्रत्युत महान् असमर्थ है ! लोमड़ी अगर ब्याई हुई हो और कोई आदमी पास में आ जाय तो वह पकड़ कर फाड़ देती है; क्योंकि उसके मन में भय रहता है कि मेरे बच्चों का कहीं नुकसान न हो जाय ! तो क्या लोमड़ी समर्थ हो गयी ? समर्थ वह है, जो सबकी रक्षा करे, सबका पालन करे। आपको भगवान ने बुद्धि दी है, खेत दिये हैं, जमीन दी है, उसमें अनाज पैदा करो। यह दूसरों को मारने के लिये नहीं दी है।
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