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गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिखा धारण की आवश्यकता

शिखा धारण की आवश्यकता

स्वामी रामसुखदास

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1121
आईएसबीएन :81-293-0947-5

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इस पुस्तक में हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए शिखा (चोटी) धारण करने की आवश्यकता पर विशेष बल दिया गया है।

Shikhs Dharan Ki Aavshykata-A Hindi Book by Swami Ramsukhdas - शिखा धारण की आवश्यकता - स्वामी रामसुखदास

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

भगवान


1.    भगवान् की प्राप्ति इच्छा से होती है।
2.    भगवान् प्राप्त होनेपर कभी बिछुड़ते नहीं।
3.    भगवान् की प्राप्ति जब होती है, पूरी होती है।
4.    भगवान् को प्राप्त करने की इच्छा होते ही पापों का नाश होने लगता है।
5.    भगवान् को प्राप्त करने की साधनामें शान्ति मिलती है।
6.    भगवान् का स्मरण करते हुए मरनेवाला सुख-शान्ति पूर्वक मरता है
7.    भगवान् का स्मरण करते हुए मरनेवाला निश्चय ही भगवान् को प्राप्त होता है।

भोग


1. भोगोंकी प्राप्ति कर्म से होती है, इच्छा से नहीं होती।
2. भोग बिना बिछुड़े कभी रहते नहीं।
3. भोगों की प्राप्ति सदा अधूरी ही रहती है।
4. भोगों को प्राप्त करनेकी इच्छा होते ही पाप होने लगते हैं।
5. भोगों को प्राप्त करने की साधना में अशान्ति बढ़ती है।
6. भोगों का स्मरण करते हुए मरनेवाला अशान्ति और दुःखपूर्वक मरता है।
7. भोगों का स्मरण करते हुए मरनेवाला निश्चय ही नरकों में जाता है।


शिखा रखने से लाभ


‘अखिल भारतीय पण्डित महापरिषद’ (वाराणसी) ने शिखा रखनेके निम्न लाभ बताये हैं—
1.    शिखा रखने तथा उसके नियमों का यथावत् पालन करने से मनुष्य को सद्बुद्धि, सद्विचार आदि की प्राप्ति होती है।
2.    शिखा रखनेसे आत्मशक्ति प्रबल बनी रहती है।
3.    शिखा रखने से मनुष्य धार्मिक, सात्त्विक और संयमी बनता है।
4.    शिखा रखने से मनुष्य लौकिक तथा पारलौकिक समस्त कार्यों में सफलता प्राप्त करता है।
5.    शिखा रखने से मनुष्य प्राणायाम, अष्टांगयोग आदि यौगिक क्रियाओं को ठीक-ठीक कर सकता है।
6.    शिखा रखनेसे सभी देवता मनुष्य की रक्षा करते हैं।
7.    शिखा रखने से मनुष्य की नेत्रज्योति सुरक्षित रहती है।
8.    शिखा रखनेसे मनुष्य स्वस्थ, बलिष्ठ, तेजस्वी और दीर्घायु होता है।

हिन्दूधर्म की रक्षा के लिये
शिखा (चोटी) धारण की आवश्यकता


हिन्दू-संस्कृति बहुत विलक्षण है। इसमें छोटी-से-छोटी अथवा बड़ी-से-बड़ी प्रत्येक बातका धर्मके साथ सम्बन्ध है और धर्म का सम्बन्ध कल्याण के साथ है। हिन्दूधर्म में जो-जो नियम बताये गये हैं वे सब-के-सब नियम मनुष्य के कल्याण के साथ सम्बन्ध रखते हैं। कोई परम्परा से सम्बन्ध रखते हैं, कोई साक्षात् सम्बन्ध रखते हैं हिन्दूधर्म में विद्याध्ययन का भी सम्बन्ध कल्याण के साथ है। संस्कृत व्याकरण भी एक दर्शनशास्त्र है, जिससे परिणाम में परमात्मा की प्राप्ति हो जाती है ! इसलिए हिन्दू धर्म के किसी नियम का त्याग करना वास्तव में अपने कल्याण का त्याग करना है !



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