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लघुपाराशरी एवं मध्यपाराशरी

केदारदत्त जोशी

प्रकाशक : मोतीलाल बनारसीदास पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :122
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 11248
आईएसबीएन :8120823540

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3.16 पापी शनि की दशा

इन्दिरा गाँधी

विश्लेषण–श्रीमती इन्दिरा गाँधी की शनि महादशा 9 फरवरी, 1970 को आरम्भ हुई। कर्क लग्न में शनि सप्तमेश अष्टमेश होने से अशुभप्रद माना जाता है। शनि के पूर्व भाग्येश गुरु की दशा उन्हें सत्ता लाभ देने वाली बनी तो भाग्येश गुरु से दृष्ट पंचमस्थ बुध को भी शुभ माना जा सकता है।


शनि-शनि
(i) 18 मार्च, 1971 को प्रधानमन्त्री के रूप में इन्दिरा जी ने पदभार सँभाला
(ii) 4 दिसंबर, 71 को मित्र वाहिनी के रूप में पूर्वी पाकिस्तान में भारतीय सेना ने प्रवेश कर 16 दिसम्बर 1971 को बांग्लादेश को मुक्ति दिला दी।
(iii) 5 जनवरी, 1972 को भारत ने अमरीकी गेहूँ का आयात बन्द किया।

शनि-बुध
(iv) बम्बई समुद्र में कच्चा तेल मिला (19 फरवरी, 1974)
(v) इन्दिरा गाँधी के चुनाव को गैरकानूनी बनाने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने राहत दी (24 जून 1972)।
(vi) 25 जून, 1975 को आपातकाल स्थिति की घोषणा की गई।
(vii) 18 जनवरी, 1977 को लोकसभा भंग हुई।
(vii) 16 मार्च, 17 को चुनाव हुए। 22 मार्च, 17 को पराजित होने के बाद इन्दिरा जी ने त्यागपत्र दिया। 24 मार्च, 1777 को जनता पार्टी ने सत्ता सँभाली।
(ix) 8 नवम्बर, 1978 को चिकमंगलूर उपचुनाव जीत कर पुनः लोकसभा में प्रवेश किया।
(x) 11 जुलाई, 1979 को चौधरी चरण सिंह की सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पास किया।
(xi) 10 जनवरी, 1980 को इन्दिरा जी पुनः प्रधानमन्त्री पद पर आसीन हुईं।

शनि-सूर्य
(xii) 23 जून, 1980 संजय गाँधी की मृत्यु से पुत्र शोक मिला।
(xili) 2 अक्तूबर, 1982 मारुति उद्योग ने छोटी कार बनाने के लिए जापान की सुजुकी कंपनी से समझौता किया (शनि-मंगल)।
(xiv) 25 जून, 1988 (शनि-मंगल) भारत ने विश्व कप (क्रिकेट) जीता।

शनि-राहु
(xv) 3 जून, 1984 को आतंकवादियों ने 21 लोगों को मारा। पंजाब में कर्फ्यू लगा।
(xvi) 6 जून, 1984 को भारतीय सेना में स्वर्ण मंदिर को आतंकियों से मुक्त कराया।
(xvii) 31 अक्तूबर, 1984 को इन्दिरा जी की हत्या उनके अंगरक्षक द्वारा की गई।

टिप्पणी- मारकेश सूर्य पंचम भाव में व्ययेश बुध के साथ है। इसने पुत्र शोक दिया। लग्नस्थ शनि में षष्ठस्थ राहु की अंतर्दशा परस्पर षडाष्टक होने से प्राणघातक बनी। शनि का लग्नेश से स्थान परिवर्तन तथा सप्तम भाव पर भाग्येश गुरु की दृष्टि ने शनि को शुभता देक़र इनके मान-प्रतिष्ठा की वृद्धि की। इसी बीच षष्ठस्थ शुक्र व राहु की अन्तर्दशा, महादशा से षष्ठस्थ ग्रह की भुक्ति होने से अशुभ परिणाम देने वाली बनी।

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    अनुक्रम

  1. अध्याय-1 : संज्ञा पाराशरी
  2. अपनी बात

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