वास्तु एवं ज्योतिष >> लघुपाराशरी एवं मध्यपाराशरी लघुपाराशरी एवं मध्यपाराशरीकेदारदत्त जोशी
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4.10 आयु घटाने वाले योग
(i) लग्न, लग्नेश, चन्द्रमा व चन्द्र लग्नेश पर पाप प्रभाव या इनकी दुर्बलता आयु में कमी देती है।
(ii) चन्द्रमा, चन्द्र लग्नेश व लग्नेश यदि नीचस्थ, पापाक्रान्त अथवा दुःस्थान अर्थात 6,8,12 वें भाव में हों तो आयु क्षीण होती है।
(ii) केन्द्र, त्रिकोण व अष्टम भाव में पाप ग्रह तथा अष्टम भाव भी पापयुक्त हो तो आयुष्य में कमी होती है।
(iv) जन्म लग्न व चन्द्रमा मृत्यु भाग में हों, जन्म राशि संधि में हो या
(v) लग्नेश दुर्बल, हीनबली व पापाक्रान्त हो तो आयु में कमी होती है।
4.11 अन्य मारक ग्रह
अलाभे पुनरेतेषां सम्बन्धन व्ययेशितुः
क्वचिच्छुभानां च दशास्वष्टमेश दशासु च ।।26।।
यदि (i) मारकेश अर्थात् द्वितीयेश व सप्तमेश ग्रह (ii) मारक भाव में स्थित ग्रह या (iii) मारकेश से सम्बन्ध करने वाले ग्रहों की दशा यदि सम्भावित आयु खंड में न आए तो ऐसा शुभ ग्रह जों मारक भाव में बैठा हो, अष्टमेश या अष्टमस्थ ग्रह की दशा में मृत्यु दिया करता है।
टिप्पणी--
पापत्व या पाप प्रभाव जानना आवश्यक है।
(i) द्वितीय व सप्तम भाव में बैठे ग्रह
(ii) द्वितीयेश व सप्तमेश से युति करने वाले ग्रह
(ii) कोई भी ग्रह जो नीचस्थ, शत्रुक्षेत्री, अस्तंगत या पााक्रान्त हो फिर भले ही वह मारक या मारकेश से किसी भी प्रकार का सम्बन्ध न करे तब भी पापी कहलाता है।
(iv) त्रिक या त्रिषाय भाव के स्वामी से युक्त ग्रह पापी माने जाते हैं।
(v) व्ययेशित (क) अष्टम का व्यय भाव अर्थात सप्तम भाव सर्वाधिक मारक है। (ख) अष्टमात् अष्टम अर्थात् तृतीय का व्यय स्थान अर्थात द्वितीय भी अधिक मारक है (ग) लग्न से व्यय स्थान या द्वादश भाव भी मारक है।
अन्य विद्वानों ने पापी ग्रहों का क्रम निम्न प्रकार माना है-
(क) सप्तमेश 7L (ख) द्वितीयेश 2L (ग) शुक्र या गुरु यदि सप्तमेश हों (घ) द्वादश 12L इनमें जो भी मारक स्थान अर्थात सप्तम, द्वितीय या द्वादश भाव में हों, वे मृत्यु दे सकते हैं।
(vi) क्वचित् शुभानां च (क्वचिच्छुभानां व) (क) मारक स्थान 2H, 7H, 12H में बैठा शुभ ग्रह तथा (ख) केन्द्रेश-त्रिकोणेश जो नीचस्थ, शत्रुक्षेत्री या पापाक्रान्त हो, वह भी मृत्यु दे सकता है।
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