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लघुपाराशरी भाष्य

रामचन्द्र कपूर

प्रकाशक : मोतीलाल बनारसीदास पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :395
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 11249
आईएसबीएन :8120821378

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4.3 मारकेश


तदीशितुस् तत्रगतः पापिनस्तेन संयुताः ।।24B।।
तेषां दशा विपाकेषु संभवे निधनं नृणाम्
तेषाम सम्भवे साक्षाद् व्यायाधीश दशास्वपि।।25।।


इन दोनों मारक स्थानों के स्वामी अर्थात सप्तमेश व द्वितीयेश की दशा व अन्य नैसर्गिक पाप ग्रह या हीन बली ग्रह जो द्वितीय अथवा सप्तमेश से सम्बन्ध करें उनकी दशा में मृत्यु हुआ करती है।

टिप्पणी-
(i) यदि कोई ग्रह द्वितीयेश व सप्तमेश हो (अर्थात् मेष लग्न में शुक्र तथा तुला लग्न में मंगल) तो वह प्रबल मारक बन जाता है।
(ii) गुरु और शुक्र नैसर्गिक शुभ ग्रह होने से केन्द्राधिपति दोष के कारण शुभ नहीं रहते, अपितु सम हो जाते हैं। अब यदि गुरु और शुक्र द्वितीयेश या सप्तमेश होने से मारक भाव के स्वामी भी हो जाएँ तो निश्चय ही उनकी मारकता बहुत बढ़ जाती है।

4.4 मृत्युप्रद ग्रह


(i) सप्तमेश व सप्तमेश से सम्बन्ध रखने वाले पाप ग्रह-मंगल, शनि, राहु, पापयुक्त बुध नैसर्गिक पापी माने जाते हैं। ये पाप ग्रह यदि हीन बली, शत्रु क्षेत्री, नीचस्थ, अस्तंगत या पापाक्रान्त हो कर मारकेश से सम्बन्ध करें तो प्रबल मारक हो जाते हैं।
(ii) द्वितीयेश वे उससे सम्बन्धित पाप ग्रह
(iii) केन्द्रेश गुरु यो शुक्र व उनसे सम्बन्धितं पाप ग्रह
(iv) व्ययेशं या व्ययेश से सम्बन्ध करने वाले ग्रह
(v) शुभ ग्रह, जो नीचस्थ या शत्रक्षेत्री होकर मारक स्थान 2,7,12वें भाव में स्थित हों।
(vi) त्रिक व त्रिषडाय के स्वामी, जो मारक भाव या मारकेश से सम्बन्ध करें।
(vii) अष्टमेश, 22वां द्रेष्काण या 64वें नवांश का स्वामी ग्रह भी मारक हो जाता है।

4.5 मृत्यु कब


महर्षि जैमिनी ने आयु को निम्नांकित तीन वर्गों में बाँटा है -

(i) अल्पायु 20 वर्ष से 32 वर्ष तक
(ii) मध्यायु 32 वर्ष से 64 वर्ष तक
(iii) दीर्घायु 64 वर्ष से 96 वर्ष तक

यहाँ प्रथम दो जोड़ी ग्रहों की हैं तो बाद की दो जोड़ी राशियों की हैं। लग्नेश और अष्टमेश की राशिगत स्थिति कदाचित आयुष्य का मूल आधार है। चन्द्रमा लग्नेश का तो शनि अष्टमेश का प्रतिनिधि बनकर आयुष्य रूपी भवन को सुदृढ़ बनाते हैं। जन्मलग्न और चन्द्र-लग्न से प्राप्त आयु बहुधा आयु वर्ग निर्णय में सहायक होती है।

4.6 श्री प्रकाश चन्द
जन्म 22 अप्रैल, 1913;
मृत्यु -6 अगस्त, 2000 (मं-श.)

प्रथम सूत्र
(i) लग्नेश बुध द्विस्वभाव राशि में
(ii) अष्टमेश मंगल स्थिर राशि में
कोई एक स्थिर व अन्य द्विस्वभाव राशि में होने से पूर्ण आयु का योग बनता है।

द्वितीय सूत्र
(i) शनि स्थिर राशि में
(ii) चन्द्र स्थिर राशि में

दोनों ग्रहों का स्थिर राशि में होना अल्पायु दर्शाता है।

तृतीय सूत्र
(i) लग्न द्विस्वभाव राशि में
(ii) चन्द्रमा स्थिर राशि में

एक ग्रह का स्थिर व अन्य का द्विस्वभाव राशि में होना पूर्णायु दर्शाता है।
तीन में से दो सूत्रों के अनुसार जातक की आयु पूर्ण या दीर्घायु खंड में आती है।
तथ्य- इस जातक की मृत्यु 87 वर्ष पूर्ण करने के बाद 88वें वर्ष में हुई।

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    अनुक्रम

  1. अध्याय-1 : संज्ञा पाराशरी
  2. अपनी बात

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