लोगों की राय

वास्तु एवं ज्योतिष >> लघुपाराशरी सिद्धांत

लघुपाराशरी सिद्धांत

एस जी खोत

प्रकाशक : मोतीलाल बनारसीदास पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :630
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 11250
आईएसबीएन :8120821351

Like this Hindi book 0

2.3 केन्द्राधिपति, शुभ ग्रह होने पर, शुभ फल नहीं देते


न दिशन्ति शुभं नृणां सौम्याः केन्द्रधिपाः यदि
क्रूराश्चेद शुभ येते प्रबला उत्तरोत्तरम् ।।7।।


यदि शुभ ग्रह चन्द्र, बुध, गुरु, शुक्र केन्द्र भाव के स्वामी हों, तो वे शुभ फल नहीं देते अपितु सम बन जाते हैं। इसी प्रकार क्रूर ग्रह सूर्य, मंगल और शनि केन्द्राधिपति होने पर अशुभ फल नहीं देते।
(i) त्रिकोण भावों में पंचमेश 5L की अपेक्षा नवमेश 9L को अधिक बली जानें।
(ii) केन्द्र स्थानों में लग्नेश से अधिक बली सुखेश या 4L, उस से अधिक, बली सप्तमेश 7L तथा सर्वाधिक बली 10L दशमेश को जानें।
(ii) त्रिषडाय स्वामियों में 3Lअल्पबली, 6L मध्यबली तो 11L लाभेश अधिक बली होता है।
(iv) त्रिक भावेश में 6L अल्प बली, 8Lमध्ये बली तथा 12L को अधिक बली जानें। मतान्तर से अष्टम भाव भाग्य को हानि भाव होने से अष्टमेश को अधिक पापी माना जाता है।
(v) इसी प्रकार लग्नेश केन्द्र व त्रिकोण का स्वामी होने से, सदा शुभ माना जाता हैं। भले ही लग्नेश की अन्य राशि षष्ठ, अष्टम या व्यय भाव में हो, लग्नेश की शुभता पर इसका कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ता।

.

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. अपनी बात
  2. अध्याय-1 : संज्ञा पाराशरी

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai