उपासना एवं आरती >> श्रीशिवचालीसा श्रीशिवचालीसागीताप्रेस
|
7 पाठकों को प्रिय 43 पाठक हैं |
शिव चालीसा .....
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
ॐ नम: शिवाय
श्रीशिवचालीसा
श्रीशिवप्रात:स्मरणस्तोत्रम्
प्रात: स्मरामि भवभीतिहरं सुरेशं
गंगाधरं वृषभवाहनमम्बिकेशम्।
खट्वांगशूलवरदाभयहस्तमीशं
संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम्।।
प्रातर्नमामि गिरिशं गिरिजार्धदेहं
सर्गस्थितिप्रलयकारणमादिदेवम्।
विश्वेश्वरं विजितविश्वमनोऽभिरामं
संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम्।।
प्रातर्भजामि शिवमेकमनन्तमाद्यं
वेदान्तवेद्यमनघं पुरुषं महान्तम्।
नामादिभेरहितं षड्भालशून्यं
संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम्।।
गंगाधरं वृषभवाहनमम्बिकेशम्।
खट्वांगशूलवरदाभयहस्तमीशं
संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम्।।
प्रातर्नमामि गिरिशं गिरिजार्धदेहं
सर्गस्थितिप्रलयकारणमादिदेवम्।
विश्वेश्वरं विजितविश्वमनोऽभिरामं
संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम्।।
प्रातर्भजामि शिवमेकमनन्तमाद्यं
वेदान्तवेद्यमनघं पुरुषं महान्तम्।
नामादिभेरहितं षड्भालशून्यं
संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम्।।
प्रात: समुत्थाय शिवं विचिन्त्य श्लोकत्रयं येऽनुदिनं पठन्ति।
ते दु:खजातं बहुजन्मसंचितं हित्वा पदं यान्ति तदेव शम्भो:।।
ते दु:खजातं बहुजन्मसंचितं हित्वा पदं यान्ति तदेव शम्भो:।।
श्रीशिवचालीसा
दोहा
अज अनादि अविगत अलख, अकल अतुल अविकार।
बंदौं शिव-पद-युग-कमल अमल अतीव उदार।।1।।
आर्तिहरण सुखकरण शुभ भक्ति-मुक्ति-दातार।
करौ अनुग्रह दीन लखि अपनो विरद विचार।।2।।
परयो पतित भवकूप महँ सहज नरक आगार।
सहज सुहृद पावन-पतित, सहजहि लेहु उबार।।3।।
पलक-पलक आशा भरयो, रहयो सुबाट निहार।
ढरौ तुरंत स्वभाववश नेक न करौ अबार।।4।।
बंदौं शिव-पद-युग-कमल अमल अतीव उदार।।1।।
आर्तिहरण सुखकरण शुभ भक्ति-मुक्ति-दातार।
करौ अनुग्रह दीन लखि अपनो विरद विचार।।2।।
परयो पतित भवकूप महँ सहज नरक आगार।
सहज सुहृद पावन-पतित, सहजहि लेहु उबार।।3।।
पलक-पलक आशा भरयो, रहयो सुबाट निहार।
ढरौ तुरंत स्वभाववश नेक न करौ अबार।।4।।
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book