गीता प्रेस, गोरखपुर >> पाण्डवगीता एवं हंसगीता पाण्डवगीता एवं हंसगीतागीताप्रेस
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पाण्डवगीता एवं हंसगीता श्लोकार्थसहित ...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
।।श्रीहरि:।।
निवेदन
भारतीय वाङ्मय में मानव-कल्याण के लिये गीता का महत्त्वपूर्ण योगदान है।
श्रीमद्भागवद्गीता के साथ-साथ अनेक नामों से गीता में हमें उपलब्ध होती
है। यहाँ हम ‘पाण्डवगीता’ और ‘हंस
गीता’ का
प्रकाशन पाठकों के लिये कर रहे हैं।
‘पाण्डवगीता’ भक्ति-मार्ग का एक अनुपम संकलन है, जिसमें पाँचों पाण्डव, व्यास आदि ऋषि-महर्षियों तथा तत्कालीन महापुरुषों की वाणी भगवान् श्रीनारायण की स्तुति के रूप में प्रस्तुत की गयी है। ये स्तुतियाँ एक-एक श्लोक में ही ग्रथित हैं, परन्तु इतनी मार्मिक और हृदयस्पर्शी हैं कि इन्हें पढ़ने के समय पाठक के हृदय में स्वाभाविकरूप से भक्त-सरिता प्रवाहित होने लगती है। यही कारण है कि कई वैष्णव-भक्तों में प्रतिदिन नियमपूर्वक इसके पाठ करने की परम्परा है। इसे ‘प्रपन्नगीता’ भी कहा जाता है।
इस ग्रन्थ की विशेषता यह है कि इसमें सर्वप्रथम प्रह्लाद, नारद, पराशर, पुण्डरीक, व्यासदेव, अम्बरीष, शुकदेव, शौनक, भीष्म, दाल्भ्य मुनि, राजर्षि रुक्मांगद, अर्जुन, महर्षि वसिष्ठ तथा विभीषण आदि महानुभावों को परम भागवत के रूप में नमस्कार किया गया है। इसके साथ ही इस भक्ति-सरिता के प्रमुख इष्ट हैं- आनन्दकन्द ब्रह्माण्डनायक परमानन्दस्वरूप भगवान् श्रीकृष्णचन्द्र। इनकी स्तुति पाँचों पांडवों के अतिरिक्त माता कुन्ती, माद्री, गान्धारी, द्रौपदी, सुभद्रा तथा ब्रह्मा, देवराज इन्द्र, धन्वन्तरि, पराशर, पुलस्त्य, व्यास, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, विदुर, उद्धव, अक्रूर, कर्ण, द्रुपद तथा अभिमन्यु आदि महानुभावों ने अत्यन्त भक्ति-भाव से की है। मुकुन्दमाधव भगवान् श्रीकृष्णचन्द्र का सतत स्मरण और उनके नाम की महिमा का वर्णन पूर्ण समारोह पूर्वक इन श्लोकों में हुआ है।
‘पाण्डवगीता’ भक्ति-मार्ग का एक अनुपम संकलन है, जिसमें पाँचों पाण्डव, व्यास आदि ऋषि-महर्षियों तथा तत्कालीन महापुरुषों की वाणी भगवान् श्रीनारायण की स्तुति के रूप में प्रस्तुत की गयी है। ये स्तुतियाँ एक-एक श्लोक में ही ग्रथित हैं, परन्तु इतनी मार्मिक और हृदयस्पर्शी हैं कि इन्हें पढ़ने के समय पाठक के हृदय में स्वाभाविकरूप से भक्त-सरिता प्रवाहित होने लगती है। यही कारण है कि कई वैष्णव-भक्तों में प्रतिदिन नियमपूर्वक इसके पाठ करने की परम्परा है। इसे ‘प्रपन्नगीता’ भी कहा जाता है।
इस ग्रन्थ की विशेषता यह है कि इसमें सर्वप्रथम प्रह्लाद, नारद, पराशर, पुण्डरीक, व्यासदेव, अम्बरीष, शुकदेव, शौनक, भीष्म, दाल्भ्य मुनि, राजर्षि रुक्मांगद, अर्जुन, महर्षि वसिष्ठ तथा विभीषण आदि महानुभावों को परम भागवत के रूप में नमस्कार किया गया है। इसके साथ ही इस भक्ति-सरिता के प्रमुख इष्ट हैं- आनन्दकन्द ब्रह्माण्डनायक परमानन्दस्वरूप भगवान् श्रीकृष्णचन्द्र। इनकी स्तुति पाँचों पांडवों के अतिरिक्त माता कुन्ती, माद्री, गान्धारी, द्रौपदी, सुभद्रा तथा ब्रह्मा, देवराज इन्द्र, धन्वन्तरि, पराशर, पुलस्त्य, व्यास, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, विदुर, उद्धव, अक्रूर, कर्ण, द्रुपद तथा अभिमन्यु आदि महानुभावों ने अत्यन्त भक्ति-भाव से की है। मुकुन्दमाधव भगवान् श्रीकृष्णचन्द्र का सतत स्मरण और उनके नाम की महिमा का वर्णन पूर्ण समारोह पूर्वक इन श्लोकों में हुआ है।
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