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भारतीय जीवन और दर्शन >> मेघदूतम्-कालिदास विरचित

मेघदूतम्-कालिदास विरचित

संसार चन्द्र

प्रकाशक : मोतीलाल बनारसीदास पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :327
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 11359
आईएसबीएन :8120823575

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श्रीकालिदासकविविरचितं मेघदूतम् मूलमात्रम्


कच्चित् सौम्य ! व्यवसितमिदं बन्धुकृत्यं त्वया मे
१प्रत्यादेशान्न खलु भवतो धीरतां कल्पयामि।
निःशब्दोऽपि प्रदिशसि जलं याचितश्चातकेभ्यः
प्रत्युक्त हि प्रणयिषु सताभीप्सितार्थक्रियेव।।५१।।

एतत् कृत्वा प्रियमनुचितप्रार्थनावतिनो मे
सौहार्दा वा विधुर इति वा मय्यनुक्रोशबुद्धया।
इष्टान् देशान् विचर जलद ! प्रावृषा सम्भृतश्री-
र्मा भूदेवं क्षणमपि च ते विद्युत विप्रयोगः।।५२।।

इति मेघदूत उत्तरमेघः

॥इति श्रीकालिदासकविविरचितं मेघदूतम् सम्पूर्णम्।।

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१. प्रतिशब्द उत्तरमिति यावत्।

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