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लघुपाराशरी एवं मध्यपाराशरी

राजेन्द्र मिश्र

प्रकाशक : मोतीलाल बनारसीदास पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 2003
पृष्ठ :95
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 11408
आईएसबीएन :8172701004

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अपनी बात

महर्षि पाराशर के 'बृहत् पाराशर होराशास्त्र' से ज्योतिष प्रेमी अनजांन नहीं हैं। कुछ विद्वान तो इस ग्रन्थ को ज्योतिष होरा का सन्दर्भ ग्रन्थ, तो अन्य इसे एक पुस्तकीय संग्रहालय कहते हैं।

फलित ज्योतिष के गहन अध्ययन के लिए ‘लघु पाराशरी’ मानो मुख्य प्रवेश द्वार है। इसमें पाराशर होराशास्त्र के विभिन्न सिद्धान्तों और सूत्रों को संक्षेप में समेटने का सफल प्रयास हुआ है।
विशाल ग्रन्थों को संक्षिप्त करने की परम्परा बहुत पुरानी है। ‘भगवद्गीता' व ‘दुर्गासप्तशती' की लोकप्रियता पुराणों से बहुत अधिक होने का श्रेय इनके लघु आकार को जाता है।

स्वयं महर्षि पाराशर ने योगाध्याय में सभी लग्नों के जातकों के लिए कारक व मारक ग्रह निश्चित कर, एक बड़ा कार्य मात्र कुछ श्लोकों में सम्पन्न किया है।

सम्भव है, स्वयं महर्षि पाराशर या उनके किसी सुयोग्य शिष्य ने इस लघुकाय किन्तु महत्त्वपूर्ण कृति की रचना की हो। पंडित मुकुन्द वल्लभ दैवज्ञ की ‘उडुदाय प्रदीप' तथा डॉ. सुरेश चन्द्र मिश्र की 'लघु पाराशरी’ से मुझे पर्याप्त सहायता मिली–मैं इनका हृदय से आभारी हूँ।

इस ग्रन्थ को संज्ञा अध्याय, फल निर्णय अध्याय, योग फल अध्याय, मारक अध्याय तथा दशा फल अध्याय में समेटा गया है।
ज्योतिष प्रेमियों की जिज्ञासा शान्ति के लिए अध्याय विस्तार व उदाहरण जोड़ दिए गए हैं। मुझे विश्वास है कि ज्योतिष के छात्रों व विद्वानों में यह कृति लोकप्रिय होगी।

श्री अमृतलाल जैन व उनके पुत्र श्री देवेन्द्र जैन व उनीत जैन ने अपने कार्य दल के सहयोग से इस कृति की रूप-सज्जा की, पांडुलिपि शोधन के कठिन व महत्त्वपूर्ण कार्य को सफलतापूर्वक सम्पन्न किया-अपनी निष्ठा व धैर्य के लिए, निश्चय ही वे प्रशंसा के पात्र हैं।

धरती व आकाश को नापने वाला जो काल का नियामक है व सबका रक्षक भी, वह सभी की रक्षा करे तथा सबको स्वास्थ्य व सुख प्रदान करे-इसी कामना के साथ।

 

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    अनुक्रम

  1. अपनी बात
  2. अध्याय-1 : संज्ञा पाराशरी

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