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लघुपाराशरी एवं मध्यपाराशरी

राजेन्द्र मिश्र

प्रकाशक : मोतीलाल बनारसीदास पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 2003
पृष्ठ :95
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 11408
आईएसबीएन :8172701004

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परिशिष्ट - 5

 

जन्म-लग्न पर गोचर का प्रभाव


सूर्य का जन्म-लग्न गोचर नयी जिम्मेदारियाँ देता है। जातक दायित्व निर्वाह में कुशल होता है। उसका आत्मविश्वास तथा समाज में सम्मान बढ़ता है। व्यर्थ के मतभेद व परस्पर मनमुटाव से बचना जरूरी है। कभी स्वास्थ्य संबंधी लापरवाही गंभीर रोग देती है।

चंद्रमा का जन्म-लग्न पर गोचर संवेदनशीलता तथा भावुकता बढ़ाता है। कभी कुटुम्बीजन से संबंधों में बिगाड़ पैदा होता है तो कभी महिलाओं का सहयोग सफलता दिया करता है।

मंगल का लग्न पर गोचर मतभेद व मतिभ्रम देता है। कभी व्यर्थ का कलह क्लेश और परेशानी बढ़ाता है। परिस्थितियों को संभालने में व्यवहार-कुशलता की आवश्यकता पड़ती है। योजना के अनुसार काम करने से बल व प्रताप बढ़ता है। कभी दुःसाहस, अत्यधिक परिश्रम या व्यर्थ का विवाद परेशानी बढ़ाता है। विवादों से बचना निश्चय ही श्रेष्ठ परिणाम देगा।

बुध का लग्न पर गोचर वाणी के प्रभाव तथा वाणिज्य कुशलता को बढ़ाता है। व्यापार में लाभ देता है। कभी लेखन या कथावाचन से ख्याति मिलती है। यात्रा, पर्यटन तथा मानसिक दक्षता से जुड़े कार्य धन व यश देते हैं।

गुरु का लग्न पर गोचर कार्य क्षेत्र में उन्नति व लाभ देता है। मित्र व परिचितों में सम्मान बढ़ता है। स्वास्थ्य सुधरता है। कभी मित्र व धनी-मानी व्यक्तियों के सहयोग से सफलता व प्रसिद्धि मिलती है। व्यापारिक यात्राओं से धन लाभ तथा वरिष्ठजन की कृपा से सुख की प्राप्ति होती है।

शुक्र का जन्म-लग्न पर गोचर होने से मित्र व कुटुम्बी जनों से स्नेह सहयोग बढ़ता है। मतभेद मिट जाते हैं, स्नेह संबंध प्रगाढ़ होते हैं। कभी रोमांस या प्रणय संबंध का योग बनता है, जो निश्चय ही लाभप्रद होता है, जातक सैर-सपाटे, मौज मस्ती व दावतों में अपना समय आनन्दपूर्वक बिताता है। उसकी आय व आर्थिक दशा में वृद्धि होती है।

शनि का जन्म-लग्न पर गोचर नई जिम्मेदारी देकर अधिक परिश्रम कराता है। बहुत समय से अटके हुए आधे-अधूरे काम पूरे हो जाते हैं। काम का भार निश्चय ही बढ़ता है। बेहतर होगा नयी योजनाओं की बात भूल कर पुराने व उलझे हुए कामों को सिरे चढ़ाएं। सभी आधे-अधूरे व अटके हुए मामलों को सुलझाने का यह सुनहरी मौका है। इसका लाभ उठाएं।

राहु का प्रभाव शनि सरीखा तो केतु का परिणाम मंगल सरीखा हुआ करता है।

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    अनुक्रम

  1. अपनी बात
  2. अध्याय-1 : संज्ञा पाराशरी

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