गीता प्रेस, गोरखपुर >> बालक के गुण बालक के गुणहनुमानप्रसाद पोद्दार
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प्रस्तुत है बालक के गुणों का संक्षिप्त चित्रण.....
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
नम्र निवेदन
संसार में गुणों की ही पूजा होती है। अच्छे गुण ही जीवन को उच्च एवं सुखी
बनाते हैं। इस छोटी-सी पुस्तक में विद्वान लेखक के द्वारा ऐसे ही कुछ
गुणों की चर्चा की गयी है तथा चित्रों द्वारा भी उन पर प्रकाश डाला गया
है। गुणों की चर्चा के लिये प्रेरणा मिलती है। आशा है, इससे बालकों के
जीवनका स्तर ऊँचा करने में पर्याप्त सहायता मिलेगी।
-विनीत-
हनुमान प्रसाद पोद्दार
हनुमान प्रसाद पोद्दार
पाठ-1
सत्य
सत्य परमात्मा का रूप है ।
सत्य धर्म का मूल है।
सत्य पुण्यों की जड़ है।
तुम सदा सत्य का पालन करो।
राजा हरिश्चन्द्र ने राज्य छोड़ा,
सत्य नहीं छोड़ा।
राजा दशरथ ने श्रीराम को छोड़ा,
सत्य नहीं छोड़ा।
राजा युधिष्ठिर ने वनवास स्वीकार किया,
सत्य नहीं छोड़ा।
महात्मा गाँधी ने सब कष्ट सहे,
सत्य नहीं छोड़ा।
तुम भी किसी दशा में सत्य को
मत छोड़ना।
सदा सत्य बोलो
सदा सच्चाई का व्यवहार करो।
सदा सच्चाई का साथ दो।
वाणी में सत्य।
विचार में सत्य।
व्यवहार में सत्य।
तुम्हारे पूरे जीवन में सत्य का पालन हो।
कोई संकट आये, सत्य मत छोड़ना।
कोई कठिनाई आये, सत्य मत छोड़ना।
कोई कष्ट आये, सत्य मत छोड़ना।
सत्य रहे मन में।
सत्य वचन में।
सत्य जीवन में।
सत्य आचार हो।
सत्य ही विचार हो।
सत्य सब कार्य हो।
सत्य सब कार्य हो।
सत्य धर्म का मूल है।
सत्य पुण्यों की जड़ है।
तुम सदा सत्य का पालन करो।
राजा हरिश्चन्द्र ने राज्य छोड़ा,
सत्य नहीं छोड़ा।
राजा दशरथ ने श्रीराम को छोड़ा,
सत्य नहीं छोड़ा।
राजा युधिष्ठिर ने वनवास स्वीकार किया,
सत्य नहीं छोड़ा।
महात्मा गाँधी ने सब कष्ट सहे,
सत्य नहीं छोड़ा।
तुम भी किसी दशा में सत्य को
मत छोड़ना।
सदा सत्य बोलो
सदा सच्चाई का व्यवहार करो।
सदा सच्चाई का साथ दो।
वाणी में सत्य।
विचार में सत्य।
व्यवहार में सत्य।
तुम्हारे पूरे जीवन में सत्य का पालन हो।
कोई संकट आये, सत्य मत छोड़ना।
कोई कठिनाई आये, सत्य मत छोड़ना।
कोई कष्ट आये, सत्य मत छोड़ना।
सत्य रहे मन में।
सत्य वचन में।
सत्य जीवन में।
सत्य आचार हो।
सत्य ही विचार हो।
सत्य सब कार्य हो।
सत्य सब कार्य हो।
पाठ-2
दया
जो दुखियों पर दया न करे, वह
मनुष्य नहीं।
जो कष्ट में पड़े पर दया न करे, वह
मनुष्य नहीं।
जो जीवों पर दया न करे, वह मनुष्य नहीं।
राजा शिबि ने दयावश अपना
शरीर तक दे देना चाहा।
महर्षि दधीचि ने दयावश अपनी
हड्डियाँ तक दान कर दीं।
राजा रन्तिदेव ने दयावश अपना
भोजन तक दान कर दिया।
भगवान् बुद्ध ने दया का संदेश
दिया।
महावीर स्वामी ने दया का संदेश दिया।
महात्मा ईसामसीह ने दया का संदेश दिया।
महात्मा गाँधी ने दया का संदेश दिया।
अहिंसा का पालन करो।
किसी को कठोर वचन मत कहो।
किसी को दुःख मत दो।
प्राणियों को पीड़ा देने की बात मत सोचो।
प्राणियों पर दया करो
दया क्रूर होने से बचाती है।
दया निष्ठुर होने से बचाती है।
दया कृपण होने से बचाती है।
दया अहिंसा की प्रेरणा देती है। दया परोपकार की प्रेरणा देती है।
दया सेवा की प्रेरणा देती है।
दया त्याग की प्रेरणा देती है।
दया सद्गुणों की जननी है।
दीन-दुखियों पर दया करो।
निर्धन-अनाथों पर दया करो।
रोगी-असमर्थों पर दया करो।
संकट में पड़े लोगों पर दया करो।
सभी प्राणियों पर दया करो।
दया का व्रत लो।
दयालु बनो।
मनुष्य नहीं।
जो कष्ट में पड़े पर दया न करे, वह
मनुष्य नहीं।
जो जीवों पर दया न करे, वह मनुष्य नहीं।
राजा शिबि ने दयावश अपना
शरीर तक दे देना चाहा।
महर्षि दधीचि ने दयावश अपनी
हड्डियाँ तक दान कर दीं।
राजा रन्तिदेव ने दयावश अपना
भोजन तक दान कर दिया।
भगवान् बुद्ध ने दया का संदेश
दिया।
महावीर स्वामी ने दया का संदेश दिया।
महात्मा ईसामसीह ने दया का संदेश दिया।
महात्मा गाँधी ने दया का संदेश दिया।
अहिंसा का पालन करो।
किसी को कठोर वचन मत कहो।
किसी को दुःख मत दो।
प्राणियों को पीड़ा देने की बात मत सोचो।
प्राणियों पर दया करो
दया क्रूर होने से बचाती है।
दया निष्ठुर होने से बचाती है।
दया कृपण होने से बचाती है।
दया अहिंसा की प्रेरणा देती है। दया परोपकार की प्रेरणा देती है।
दया सेवा की प्रेरणा देती है।
दया त्याग की प्रेरणा देती है।
दया सद्गुणों की जननी है।
दीन-दुखियों पर दया करो।
निर्धन-अनाथों पर दया करो।
रोगी-असमर्थों पर दया करो।
संकट में पड़े लोगों पर दया करो।
सभी प्राणियों पर दया करो।
दया का व्रत लो।
दयालु बनो।
पाठ-3
क्षमा
क्रोध पाप का मूल है
क्षमा शान्ति का मूल है
किसी ने तुम्हें कष्ट दिया—
क्षमा कर दो।
किसी ने तुम्हारी हानि की—
क्षमा कर दो।
किसी ने तुम्हारा अपमान किया—
क्षमा कर दो।
किसी ने तुम्हें कटुवचन कहे
क्षमा कर दो।
कोई तुमसे क्षमा माँगे—
क्षमा कर दो।
कोई तुमसे क्षमा न माँगे—उसे भी
क्षमा कर दो।
क्रोध अग्नि है
ईंधन डालो, आग बढ़ेगी।
क्रोध के बदले क्रोध करो,
क्रोध बढ़ेगा।
क्रोध बढ़ेगा तो द्वेष बढ़ेगा।
द्वेष बढ़ेगा, हिंसा होगी।
अशान्ति बढ़ेगी।
दुःख बढ़ेगा।
क्षमा शान्ति का मूल है
किसी ने तुम्हें कष्ट दिया—
क्षमा कर दो।
किसी ने तुम्हारी हानि की—
क्षमा कर दो।
किसी ने तुम्हारा अपमान किया—
क्षमा कर दो।
किसी ने तुम्हें कटुवचन कहे
क्षमा कर दो।
कोई तुमसे क्षमा माँगे—
क्षमा कर दो।
कोई तुमसे क्षमा न माँगे—उसे भी
क्षमा कर दो।
क्रोध अग्नि है
ईंधन डालो, आग बढ़ेगी।
क्रोध के बदले क्रोध करो,
क्रोध बढ़ेगा।
क्रोध बढ़ेगा तो द्वेष बढ़ेगा।
द्वेष बढ़ेगा, हिंसा होगी।
अशान्ति बढ़ेगी।
दुःख बढ़ेगा।
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