गीता प्रेस, गोरखपुर >> मानस शंका समाधान मानस शंका समाधानजयरामदास
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इसमें मानस की शंकाओं का वैकुण्ठवासी श्रीदीनजी बड़ा सुन्दर समाधान करते है। ...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
।।श्रीहरि:।।
निवेदन
श्रीरामचरितमानस के कथा-प्रसंगों पर पाठकगण नाना प्रकार की शंकाएँ किया
करते हैं और विद्वान लेखक तथा कथावाचकगण उनका विभिन्न प्रकारों से समाधान
करते हैं। ‘मानस’ की ऐसी शंकाओं का वैकुण्ठवासी
श्रीदीनजी
बड़ा सुन्दर समाधान करते थे और सुनने वालों तथा पढ़ने वालों को उससे बड़ा
संतोष होता था। इस संग्रह में ऐसी ही कुछ खास-खास शंकाओं का समाधान
प्रकाशित किया जा रहा है। आशा है, इससे पाठकों को संतोष होगा।
विनीत
हनुमानप्रसाद पोद्दार
सम्पादक
हनुमानप्रसाद पोद्दार
सम्पादक
।।श्रीहरि:।।
मानस-शंका-समाधान
1-श्रीहनुमानजीकी उपासना कब करनी चाहिये ?
शंका-
सर्वसाधारण और अधिकतर महात्माओं के मुखाविन्द
से सुनने में आता है कि
‘सवा पहर दिन चढ़ जाने के पहले श्रीहनुमानजी का नाम-जप तथा
हनुमानचालीसा का पाठ नहीं करना चाहिये।’ क्या यह बात यथार्थ है ?
समाधान-
आज तक इस दास को न तो किसी ग्रन्थ में ऐसा
कहीं प्रमाण नहीं मिला
कि उपासक को किसी महात्मा के ही मुखारविन्द से सुनने को मिला है कि उपासक
को किसी उपास्यदेव के स्रोत्रों का पाठ या उसके नाम का जप इत्यादि
प्रात:काल सवा पहर तक न कर, उसके बाद करना चाहिये। बल्कि हर जगह इसी बात
का प्रमाण मिलता है कि सगा और निरन्तर तैलधारावत् अजस्र, अखण्ड भजन-स्मरण
करना चाहिये। यथा-
‘रसना निसि बासर राम रटौ !’ (कवित्त-रामायण)
‘सदा राम जपु, राम जपु।’
‘जपहि नाम रघुनाथ को चरचा दूसरी न चालु।’
‘तुलसी तू मेरे कहे रट राम नाम दिन राति।’
‘सदा राम जपु, राम जपु।’
‘जपहि नाम रघुनाथ को चरचा दूसरी न चालु।’
‘तुलसी तू मेरे कहे रट राम नाम दिन राति।’
(विनय-पत्रिका)
इसी प्रकार श्रीहनुमानजी के संबंध में सदा-सर्वदा भजन करने का ही प्रमाण
मिलता है।
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