गीता प्रेस, गोरखपुर >> देवर्षि नारद देवर्षि नारदद्वारका प्रसाद शर्मा
|
10 पाठकों को प्रिय 35 पाठक हैं |
इसमें देवर्षि नारद के चरित पर प्रकाश डाला गया है।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
निवेदन
भगवद्भक्ति के प्रधान आचार्य लोक-प्रसिद्ध परम भागवत देवर्षि श्रीनारद का
महान चरित्र जगत् के परम आदर्श है। देवर्षि नारद ज्ञान के स्वरूप, भक्ति
के सागर, परम पुनीत प्रेम के भण्डार, दया के निधान, विद्या के खजाने,
आनन्द की राशि, सदाचार के आधार, सर्वभूतों के सुहृद्, विश्व के सहज
हितकारी, अधिक क्या वे समस्त सद्गुणों की खान हैं। नारद का चरित्र अपार
है, उसका पूरा संकलन और प्रकाशन तो असम्भव है, उनके जीवन की कुछ इनी-गिनी
घटनाओं और उनके थोड़े-से उपदेशों का यह संग्रह प्रकाशित करने में गीता
प्रेस के संचालक अपना बड़ा सौभाग्य समझते हैं। देवर्षि नारद सारे
विश्व-प्राणियों के-देवता, मनुष्य, राक्षस, सभी के समान आदरणीय और पूजनीय
क्यों हैं, इस सम्बन्ध में महाभारत में एक बड़ा सुन्दर प्रसंग है। जिसमें
देवर्षि के पुनीत गुणों और उसके विश्ववन्द्य होने के कारणों का संक्षेप
में उल्लेख है; मनुष्य किस प्रकार के गुणों से सम्पन्न होने पर जगत्पूज्य
होता है, इस बात का पता उक्त प्रसंग से भलीभाँति लग जाता है, पाठकों के
लाभार्थ उक्त प्रसंग यहाँ दिया जाता है।
एक समय राजा उग्रसेन ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि नारदजी के गुण-गान से मनुष्य को दिव्य-लोक की प्राप्ति होती है, इससे इतना तो मैं समझता हूँ कि नारद सर्व-सद्गुणों से सम्पन्न हैं, परन्तु हे केशव ! आप बतलाइये कि नारद में वे गुण कौन-कौन-से हैं ?’ इसके उत्तर में भगवान् बोले कि ‘हे राजन् ! नारद के जिस उत्तम गुणों को मैं जानता हूं उन्हें संक्षेप में कहता हूँ, आप ध्यान देकर सुनिये।’
नारद को अपने चरित्र का कभी अभिमान नहीं हुआ कि जो उसके देह को सन्ताप देता। उसका शास्त्रज्ञान और चरित्र सदा ही अस्खलित है, इसी से वह सर्वत्र पूजित होता है। नारद में प्रेमहीनता, क्रोध, चपलता और भय-ये दोष कभी देखने में नहीं आते, वह कर्तव्य में तत्पर और शूरवीर हैं,
एक समय राजा उग्रसेन ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि नारदजी के गुण-गान से मनुष्य को दिव्य-लोक की प्राप्ति होती है, इससे इतना तो मैं समझता हूँ कि नारद सर्व-सद्गुणों से सम्पन्न हैं, परन्तु हे केशव ! आप बतलाइये कि नारद में वे गुण कौन-कौन-से हैं ?’ इसके उत्तर में भगवान् बोले कि ‘हे राजन् ! नारद के जिस उत्तम गुणों को मैं जानता हूं उन्हें संक्षेप में कहता हूँ, आप ध्यान देकर सुनिये।’
नारद को अपने चरित्र का कभी अभिमान नहीं हुआ कि जो उसके देह को सन्ताप देता। उसका शास्त्रज्ञान और चरित्र सदा ही अस्खलित है, इसी से वह सर्वत्र पूजित होता है। नारद में प्रेमहीनता, क्रोध, चपलता और भय-ये दोष कभी देखने में नहीं आते, वह कर्तव्य में तत्पर और शूरवीर हैं,
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book