गीता प्रेस, गोरखपुर >> मधुर मधुरहनुमानप्रसाद पोद्दार
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इसमें दिव्य श्रीराधा माधव-प्रेम की झाँकी प्रस्तुत है......
जिनका ह्रदय प्रेम-पयोनिधिकी उत्ताल तरंगोंका क्रीड़ास्थल बन जाता है, उनकी वे भावतरंगें भी कूल से टकराकर कभी-कभी मुखरित हो उठती है और जगत् के बहिर्मुख लोगों को भी उनके दिव्य उद्गारों के रुप में उनके उस ह्रदय स्थित रस के कतिपय सीकर उपलब्ध करने का सौभाग्य प्राप्त हो जाता है। और उनका अन्तःकरण क्षणभर के लिए रस से आविष्ट होकर रसमयता का अनुभव करने लगता है।
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