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गीता प्रेस, गोरखपुर >> व्रत-परिचय

व्रत-परिचय

हनुमान शर्मा

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :381
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1173
आईएसबीएन :81-293-0160-1

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व्रत-परिचय...

Vrit Parichaya -A Hindi Book by Hanuman Sharma - व्रत-परिचय - हनुमान शर्मा

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

।।श्रीहरि:।।

नम्र निवेदन

सभी देशों तथा धर्मों में व्रत का महत्वपूर्ण स्थान है। व्रत से मनुष्य की अन्तरात्मा शुद्ध होती है। इससे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा भक्ति तथा पवित्रता की वृद्धि होती है; अकेला एक उपवास सैकड़ों रोगों का संहार करता है, नियमत: व्रत तथा उपवासों के पालन से उत्तम स्वास्थ्य एवं दीर्घजीवन की प्राप्ति होती है-यह सर्वथा निर्विवाद है।
‘व्रियते स्वर्गं व्रजन्ति स्वर्गमनेन वा’-जिससे स्वर्ग में गमन अथवा स्वर्ग का वरण होता हो (पृषोदरादि)- इस अर्थ में ‘व्रत’ शब्द की निरुक्ति होती है। ‘निरुक्त’ में व्रत का अर्थ सत्कर्मानुष्ठान तथा इस क्रिया से निवृत्त कहा गया है1। अमरसिंह आदि कोषनिर्माताओं, निबन्धकारों तथा दूसरे व्याख्याताओं ने व्रत का अर्थ उपवासादि पुण्य नियमों का ग्रहण बतलाया गया है।

‘नियमो व्रतमस्त्री तच्चोपवासादि पुण्यकम्’

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1. व्रतमिति कर्मनाम-वृणोतीति सत:। अत्र स्कन्दस्वामी-कर्तरि सत् इति कृतव्याख्यानम्.........व्रतं कर्मोच्येत। कस्माद् वारयते तद्धि संकल्पपूर्वकं प्रवृत्तिरूपमग्निहोत्रादिकर्मप्रत्यवायं वारयतीति पुरुष: प्रवर्तमानो निवर्तमानश्च व्रतेनाभिसंबंधस्तेनाव्रतेन निर्वायति इति व्रतस्यैव प्राधान्याद्धेतुकर्तृत्वेन विवध्यते वृणातेर्धातो: (स्वा.उ.) पृषिरंजिभ्यां कित् (उ.3/108) इति विधीयमानस्तच्प्रत्ययो बाहुलकाद् भवति कित्वाद् गुणाभावो यणादेश:।

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