गीता प्रेस, गोरखपुर >> ईशावास्योपनिषद् ईशावास्योपनिषद्गीताप्रेस
|
4 पाठकों को प्रिय 5 पाठक हैं |
ईशावास्योपनिषद् सानुवाद शांकरभाष्यसहित...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
नम्र निवेदन
वेद के शीर्षस्थानीय भाग का नाम वेदान्त है। यह वेदान्त ही ब्रह्मविद्या
है। ब्रह्मविद्या ही सर्वत्र समत्व का दर्शन कराती है, ब्रह्मविद्या से ही
अज्ञान की ग्रन्थियाँ कटती हैं, ब्रह्मविद्या से ही कर्मचांचल्य सुसंयत और
चित्त अन्तर्मुखी होता है। ब्रह्मविद्या से ही मिथ्या अनुभूति का विनाश और
परम सत्य की उपलब्धि होती है। ब्रह्मविद्या से ही एकात्मरसप्रत्ययसार
अवांगमनसगोचर स्वयंप्रकाश विज्ञानस्वरूप चेतनानन्दघन रसैकघन ब्रह्म की
प्राप्ति होती है। इस ब्रह्मविद्या का प्रतिपादन वेद के जिस अत्युच्च
शिरोभाग में है, उसी का नाम उपनिषद है। इन्हीं उपनिषदों के मन्त्रों का
समन्वय और इसकी मीमांसा भगवान् वेदव्यास ने ब्रह्मसूत्रों में की है और
इन्हीं उपनिषदरूपी गौओं से गोपालनन्दन भगवान् श्रीकृष्ण के सुधी भोक्ताओं
के लिये गीतामृतरूपी दुग्धका दोहन किया था।
इसीलिये उपनिषद, ब्रह्मसूत्र और श्रीमद्भागवद्गीता प्रस्थानत्रयी कहलाते हैं और भारत के प्रायः सभी आचार्यों ने इसी प्रस्थानत्रयी के प्रकाश से सत्य का अन्वेषण किया है और प्रायः सभी ने इन पर अपने-अपने भाष्य लिखे हैं। । अपने–अपने स्थान में सभी आचार्यों के भाष्य उपादेय हैं, परंतु अद्वैत वेदान्त प्रतिपादन करने वाले भाष्यों में भगवान् श्रीशंकराचार्य का भाष्य सर्वोपरि माना जाता है। उपनिषदों पर तो दूसरे आचार्यों के भाष्य हैं भी थोड़े ही। भगवान् की कृपा से आज कुछ उपनिषदों के उसी शांकरभाष्य का भाषानुवाद प्रकाशन करने का सौभाग्य गीताप्रेस को प्राप्त हुआ है। आशा है, ब्रह्मविद्या के जिज्ञासु अधिकारी पाठक इससे लाभ उठावेंगे।
इसीलिये उपनिषद, ब्रह्मसूत्र और श्रीमद्भागवद्गीता प्रस्थानत्रयी कहलाते हैं और भारत के प्रायः सभी आचार्यों ने इसी प्रस्थानत्रयी के प्रकाश से सत्य का अन्वेषण किया है और प्रायः सभी ने इन पर अपने-अपने भाष्य लिखे हैं। । अपने–अपने स्थान में सभी आचार्यों के भाष्य उपादेय हैं, परंतु अद्वैत वेदान्त प्रतिपादन करने वाले भाष्यों में भगवान् श्रीशंकराचार्य का भाष्य सर्वोपरि माना जाता है। उपनिषदों पर तो दूसरे आचार्यों के भाष्य हैं भी थोड़े ही। भगवान् की कृपा से आज कुछ उपनिषदों के उसी शांकरभाष्य का भाषानुवाद प्रकाशन करने का सौभाग्य गीताप्रेस को प्राप्त हुआ है। आशा है, ब्रह्मविद्या के जिज्ञासु अधिकारी पाठक इससे लाभ उठावेंगे।
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book