गीता प्रेस, गोरखपुर >> 17 श्रीमद्भगवद्गीता 17 श्रीमद्भगवद्गीताजयदयाल गोयन्दका
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प्रस्तुत है श्रीमद्भगवद्गीता पदच्छेद अन्वय...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
ॐ
श्रीपरमात्मने नमः
शास्त्रों का अवलोकन और महापुरुषों के वचनों का श्रवण करके मैं इस निर्णय पर पहुँचा कि संसार में श्रीमद्भगवद्गीता के समान कल्याण के लिये कोई भी उपयोगी ग्रन्थ नहीं है। गीता में ज्ञानयोग, ध्यानयोग, कर्मयोग, भक्तियोग आदि जितने भी साधन बतलाये गये हैं, उनमें से कोई भी साधन अपनी श्रद्धा, रुचि और योग्यता के अनुसार करने से मनुष्य का शीघ्र कल्याण हो सकता है।
अतएव उपर्युक्त साधनों का तथा परमात्मा का तत्त्व रहस्य जानने के लिये महापुरुषों का और उनके अभाव में उच्चकोटि के साधकों का श्रद्धा-प्रेमपूर्वक संग करने की विशेष चेष्टा रखते हुए गीता का अर्थ और भावसहित मनन करने तथा उसके अनुसार अपना जीवन बनाने के लिये प्राण पर्यन्त प्रयन्त करना चाहिए।
निवेदक
अतएव उपर्युक्त साधनों का तथा परमात्मा का तत्त्व रहस्य जानने के लिये महापुरुषों का और उनके अभाव में उच्चकोटि के साधकों का श्रद्धा-प्रेमपूर्वक संग करने की विशेष चेष्टा रखते हुए गीता का अर्थ और भावसहित मनन करने तथा उसके अनुसार अपना जीवन बनाने के लिये प्राण पर्यन्त प्रयन्त करना चाहिए।
निवेदक
जयदयाल गोयन्दका
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