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मंत्र साधना द्वारा गृह चिकित्सा

शुकदेव चतुर्वेदी

प्रकाशक : इंडिका पब्लिशर प्रकाशित वर्ष : 2012
पृष्ठ :128
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 11933
आईएसबीएन :9788177273045

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मंत्रों की साधना से घरेलू चिकित्सा करें

दो शब्द

वैदिक, चिन्तन धारा में मानव जीवन में मिलने वाले सुख-दुःख, मान-अपमान, लाभ-हानि, हार-जीत एवं अच्छा-बुरा आदि जो भी फल हैं, उसके तीन कारण माने जाते हैं –

  1. जीव के प्रारब्धकर्म
  2. ईश्वर की इच्छा
  3. प्रकृति का नियम

प्रथम दृष्टि में मोटे तौर पर ये तीनों कारण अलग-अलग लगते हैं। किन्तु तात्विक दृष्टि से विचार करने पर इन तीनों में कोई अन्तर दिखलाई नहीं पड़ता। क्‍योंकि प्रकृति ईश्वर की इच्छा के अनुसार चलती है। अतः प्रकृति के नियम ईश्वर की इच्छा के अनुरूप ही होते हैं और जीवन के कर्म प्रकृति के अनुरूप होते हैं, उसके विरुद्ध नहीं। अतः मानव जीवन के घटनाक्रम का एक ही कारण है-उसको चाहे ईश्वर की इच्छा कहा जाए, प्रकृति का नियम कहा जाए या कर्म फल कहा जाए।

तात्पर्य यह है, कि प्रकृति के सत्त्व, रजत एवं तमस गुणों का प्रभाव ग्रहों को गतिशील और जीवों को कर्मशील बनाता है। इसलिए ग्रहों की गतिविधियों और मानव जीवन की गतिविधियों का प्रकृति से सीधा सम्बन्ध है और चूंकि प्रकृति ईश्वर की इच्छा के अनुरूप चलती है। अतः मानव जीवन के घटनाचक्र का आप इन तीनों में से कोई भी कारण मान लें – वस्तुतः वह एक ही बात है। मानव शरीर की उत्पत्ति प्रारब्ध कर्मों का फल भोगने के लिए होती है। अतः वैदिक कर्मवाद एवं पुनर्जन्मवाद के अनुसार जिसका जैसा कर्म वैसा जन्म होता है। और जन्म के समय जैसा प्रारब्ध कर्मों का फल भोगने के लिए मिलता है, जीवन में वैसी ही घटनाएं घटित होती हैं। और उस घटनाचक्र को सूचित करने वाली वैसी ही ग्रह स्थिति में जीव का जन्म होता है। वस्तुतः ग्रह अपनी ओर से कोई फल नहीं देते, वे तो प्रारब्ध कर्मों के इस जन्म में मिलने वाले फल की सूचना देते है। क्योंकि ‘‘ग्रह्माः वै कर्मसूचकाः’’-अर्थात्‌ ग्रह प्रारब्ध कर्मों और उसके फल के सूचक होते हैं-नियामक नहीं।

मनुष्य योनि की यह विशेषता है, कि वह प्रारब्ध कर्मों के फल को भोगने से बंधा हुआ होने पर भी क्रियमाण कर्मों को करने में स्वतन्त्र होता है। यदि क्रियमाण कर्मों को करने में मनुष्य को स्वतन्त्र न माना जाए तो धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष-इन चारों पुरुषार्थों की सिद्धि की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

इस विषय में यह सदैव ध्यान में रखना चाहिए-“कि जिन कर्मों को आज प्रारब्ध कहा जा रहा है, वे सब जिस समय में हुए थे-तब वे क्रियमाण ही थे।’’ इस प्रकार क्रियमाण कर्मों से प्रारब्ध या भाग्य के बनने के कारण-हमारे कर्म ही हमारे भाग्य के जनक होते हैं। और इसीलिए क्रिमाण कर्मों के अनुष्ठान द्वारा प्रारब्ध या भाग्य में परिवर्तन किया जा सकता है।

जन्म जन्मान्तरों में किये गये कर्मां में से जितने कर्मों का फल भोगने के लिए मनुष्य को यह जन्म मिला है, उतने या उन कर्मों को प्रारब्ध या भाग्य कहते हैं। और जिन कर्मों को मनुष्य अपने इस जीवन में कर रहा है या आगे भी करेगा, उतने या उन कर्मों को क्रियमाण कर्म कहा जाता है। इन क्रियमाण कर्मों की उस शास्त्रीय विधि को ‘‘ग्रह शान्ति’’ कहते हैं, जो ग्रहों के माध्यम से सूचित अनिष्टकारी प्रारब्ध फल को शान्त करती है। इस प्रकार वैदिक परम्परा में ग्रह शान्ति के माध्यम से ग्रहों के अनिष्ट फल को नियन्त्रित किया जाता है।

वैदिक कर्मकाण्ड में ग्रह शान्ति की दो प्रणालियां प्रचलित हैं –

  1. मन्त्रोपासना एवं 2. प्रतीकोपासना। मन्त्रोपासना में मुख्य रूप से अनिष्टकारक ग्रह के मन्त्र का अनुष्ठान किया जाता है। इसमें मुख्य तत्त्व मन्त्र का जप होता है। मन्त्र वह गूढ़ ज्ञान है, जो व्यक्ति की प्रसुप्त शक्ति को जाग्रत कर दिव्य शक्ति के साथ उसका सामन्जस्य बना देता है और मन्त्रानुष्ठान एक ऐसी प्रविधि है, जिससे इसका अनुष्ठान करने वाला साधक अपनी लौकिक एवं पारलौकिक कामनाओं को पूरा कर सकता है।

श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ, नई दिल्‍ली के पुनश्चर्या पाठयक्रम तथा विश्व विद्यालय अनुदान आयोग, नई दिल्‍ली द्वारा स्वीकृत एवं विद्यापीठ द्वारा स्वीकृत एवं विद्यापीठ द्वारा संचालित मेडिकल एस्ट्रोलाजी के पाठ्यक्रम के पाठ्य ग्रन्थ के रूप में लिखित इस पुस्तक में मन्त्र साधना की मूल संकल्पना, मन्त्र साधना के प्रधान एवं सहायक उपकरणों के वर्णन एवं विवेचन के साथ ग्रह शान्ति के मन्त्रानुष्ठान के लिए ग्रहों के ध्यान, उनके मन्त्र, जप संख्या एवं ग्रहों के स्तोत्र आदि सभी बातों का निरूपण किया गया है। साथ ही साधकों की आस्था एवं क्षमता के अनुरूप ग्रहों के वैदिक मन्त्र, तान्त्रिक मन्त्र, नाम मन्त्र, पौराणिक मन्त्र एवं जैन मन्त्रों का प्रतिपादित किया गया है, ताकि मन्त्रानुष्ठान में साधक को मनोनुकूल मन्त्र के चयन की सुविधा मिल सके।

प्रतीकोपासना में अरिष्ट सूचक ग्रह का ग्रहमण्डल पर अपने अधिदेव, प्रत्यधिदेव, गणपति आदि कल्याणकारी देव एवं लोकपाल देवों के साथ आवाहन, पूजन, हवन एवं बलिदान पूर्वक अनुष्ठान किया जाता है। यह अनुष्ठान कर्मकाण्ड मूलक है और इसमें पूजन एवं हवन मुख्य तत्व है। वैदिक चिन्तकों में मनुष्य एवं देवताओं के बीच ‘परस्पर भावयन्तः’ के सम्बन्ध को आदर्श माना है। इससे मनुष्य को जीने की शक्ति और प्रतिकूलता में सहारा मिलता है। जब से हमने इस सहारे को छोड़ा है – इसके परिणाम हमारे सामने है।

विषय- प्रवेश

मानव जीवन

  • जीवन के घटनाक्रम को जानने की रीति
  • फल और उसके भेद

सामान्य फल, योगफल, स्वाभाविक (आत्मभावानुरूपी) फल, दशाफल, गोचर-फल

दशाफल, गोचर-फल।

  • जीवन की समस्याओं का कारण और उसका निर्धारण
  • जीवन की समस्या एवं संकटों का निवारण

मन्त्र, रत्न, औषधि, दान, स्नान

  • ग्रह चिकित्सा का सबसे विश्वसनीय साधन मन्त्र

मन्त्र की परिभाषा, मन्त्र के भेद, मन्त्र का अर्थ, मन्त्र-चैतन्य, मन्त्र साधना।

  • मन्त्र साधना के प्रधान उपकरण

ज्ञान, विश्वास, गुरु, काल।

  • भाग्य और कर्म
  • काल एवं काल विज्ञान
  • ज्योतिषशास्त्र की विशेषताएँ
  • मन्त्र-साधना के सहायक उपकरण

साधना का महत्त्व, साधना का स्वरूप, साधना का सौन्दर्य, साधक का धर्म।

  • हमारा आधार और लक्ष्य
  • नवग्रह उनके अधिदेव एवं प्रत्यधिदेव
  • ग्रह शान्ति का आधार

ग्रह शान्ति, ग्रहों का ध्यान।

  • ग्रहों के मन्त्र

सूर्य के मन्त्र, चन्द्रमा के मन्त्र, मंगल के मन्त्र, बुध के मन्त्र, गुरु के मन्त्र, शुक्र के मन्त्र, शनि के मन्त्र, राहु के मन्त्र, केतु के मन्त्र।

  • ग्रहों के स्रोत्र

आदित्य हृदय स्तोत्र, चन्द्रमा स्तोत्र, मंगलस्तोत्र, बुध स्तोत्र, बृहस्पति स्तोत्र, शुक्रस्तोत्रम्‌, शनि स्तोत्र, राहु एवं केतु स्तोत्र।

  • मन्त्र-साधना द्वार ग्रह शान्ति

ग्रहों का हवन, प्रतीकोपासना, अधिदेवताओं के आवाहन मन्त्र, प्रत्यधिदेवताओं के मन्त्र, लोकपाल देवताओं के मन्त्र, दिक्पालों के मन्त्र।

  • अनिष्टयोगकारक योगों की शान्ति
  • अरिष्टि योग और उसकी शान्ति

रोग-निवृत्ति के मन्त्र, मृत्यु-भय से निवृत्ति के मन्त्र।

  • विद्या प्राप्ति के मन्त्र
  • आर्थिक समस्याएँ और उनका समाधान

केमद्रुम योग की शान्ति, कालसर्प योग की शान्ति, निर्धन-दरिद्री योग की शान्ति, दरिद्रता नाशक रविमन्त्र, दरिद्रता नाशक भौममन्त्र, दरिद्रता नाशक लक्ष्मी मन्त्र, दरिद्रता नाशक दुर्गा मन्त्र, ऋणनाशक कुबेर मन्त्र, सिद्धि एवं समृद्धि के लिए सिद्धि विनायक मन्त्र, व्यापार वृद्धि के लिए गणेश मन्त्र, मंगलीदोष के शान्त्यर्थ मंगलागौरी मन्त्र, विवाह बाधा की निवृत्ति के लिए गौरी मन्त्र, इच्छित पत्नी की प्राप्ति का मन्त्र, इच्छित पति की प्राप्ति का मन्त्र, मृतवत्सा शान्ति का मन्त्र, काकवन्ध्याशान्ति का उपाय, वन्ध्या के लिए गर्भधारणोपाय, पुत्रदायक सन्‍तानगोपाल मन्त्र, उपसर्गबाधा के लिए नृसिंह मन्त्र, उपसर्ग बाधा के लिए – हनुमन्मन्त्र

  • मन्त्र के मूल स्रोत्र
  • मन्त्र के व्यापक क्षेत्र

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