गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
अलर्क ने कहा- भगवन्! आपकी कृपासे मुझे ऐसा उत्तम ज्ञान प्राप्त हुआ, जो जड प्रकृति और चेतन-शक्तिका विवेक करनेवाला है; किन्तु मेरा मन विषयोंके वशीभूत है, अतः वह इस ज्ञानमें स्थिर नहीं हो पाता। मैं नहीं जानता कि इस प्रकृतिके बन्धनसे कैसे छूट सकूँगा। कैसे मेरा इस संसारमें फिर जन्म न हो? किस प्रकार मैं निर्गुण भावको प्राप्त होऊँ और कैसे सनातन ब्रह्मके साथ एकता प्राप्त करूँ? ब्रह्मन्! मुझे ऐसा ही उत्तम योग बताइये, जिससे मैं मुक्त हो सकूँ। इसके लिये आपके चरणोंमें मस्तक रखकर याचना करता हूँ; क्योंकि आप-जैसे संतोंका सङ्ग ही मनुष्योंका परम उपकार करनेवाला है।
दत्तात्रेयजी बोले- राजन्! योगीको ज्ञानकी प्राप्ति होकर जो उसका अज्ञानसे वियोग होता है, वही मुक्ति है और वही ब्रह्मके साथ एकता एवं प्राकृत गुणोंसे पृथक् होना है। मुक्ति होती है योगसे। योग प्राप्त होता है सम्यक् ज्ञानसे, सम्यक् ज्ञान होता है वैराग्यजनक दुःखसे और दुःख होता है ममताके कारण स्त्री, पुत्र, धन आदिमें चित्तकी आसक्ति होनेसे। अतः मुक्ति की इच्छा रखनेवाला पुरुष आसक्ति को दुःखका मूल समझकर यत्नपूर्वक त्याग दे। आसक्ति न होनेपर 'यह मेरा है' ऐसी धारणा दूर हो जाती है। ममता का अभाव सुख का ही साधक है। वैराग्य से सांसारिक विषयों में दोष का दर्शन होता है। ज्ञानसे वैराग्य और वैराग्यसे ज्ञान होता है। जहाँ रहना हो, वही घर है। जिससे जीवन चले, वही भोजन है और जिससे मोक्ष मिले, वही ज्ञान बताया गया है। इसके सिवा सब अज्ञान है। राजन्! पुण्य और पापोंको भोग लेनेसे, नित्यकर्मोंका निष्कामभाव से अनुष्ठान करनेसे, अपूर्वका संग्रह न होनेसे तथा पूर्वजन्मके किये हुए कर्मोंका क्षय हो जानेसे मनुष्य बारंबार देहके बन्धनमें नहीं पड़ता। राजन्! यह तुमसे ज्ञानके विषयमें कुछ बातें बतलायी गयीं। अब उस योगका वर्णन सुनो, जिसे प्राप्त कर योगी पुरुष सनातन ब्रह्मसे कभी पृथक् नहीं होता।
योगियोंको पहले आत्मा (बुद्धि) के द्वारा आत्मा (मन) को जीतने की चेष्टा करनी चाहिये; क्योंकि उसको जीतना बहुत कठिन है। अतः उसपर विजय पानेके लिये सदा ही यत्न करना चाहिये। इसका उपाय बतलाता हूँ, सुनो। प्राणायामके द्वारा राग आदि दोषोंका, धारणा* के द्वारा पापका, प्रत्याहार**के द्वारा विषयोंका और ध्यानके द्वारा ईश्वरविरोधी गुणोंका निवारण करे।
* देशबन्धश्चित्तस्य धारणा – किसी एक स्थानमें चित्तको बाँधना अर्थात् परमात्मामें मनको स्थापित करना 'धारणा' है।
**इन्द्रियोंको विषयोंकी ओरसे हटाकर चित्तमें लीन करना 'प्रत्याहार' कहलाता है।
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- वपु को दुर्वासा का श्राप
- सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
- धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
- राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
- पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
- जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
- जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
- पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
- दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
- दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
- अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
- पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
- तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
- ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
- मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
- मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
- श्राद्ध-कर्म का वर्णन
- श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
- त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
- सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
- अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
- प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
- स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
- जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
- श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
- भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
- भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
- स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
- पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
- राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
- तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
- रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
- चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
- वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
- सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
- मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
- देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
- सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
- इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
- देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
- धूम्रलोचन-वध
- चण्ड और मुण्ड का वध
- रक्तबीज-वध
- निशुम्भ-वध
- शुम्भ-वध
- देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
- देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
- सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
- नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
- रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
- भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
- सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
- अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
- दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
- राजा खनित्रकी कथा
- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य