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गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण

मार्कण्डेय पुराण

गीताप्रेस

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :294
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1196
आईएसबीएन :81-293-0153-9

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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...

दत्तात्रेयजी कहते हैं-जो योगी इस प्रकार भलीभाँति योगचर्या में स्थित होते हैं, उन्हें सैकड़ों जन्मोंमें भी अपने पथसे विचलित नहीं किया जा सकता। जिनके सब ओर चरण, मस्तक और कण्ठ हैं, जो इस विश्वके स्वामी तथा विश्वको उत्पन्न करनेवाले हैं, उन विश्वरूपी परमात्माका प्रत्यक्ष दर्शन करके उनकी प्राप्तिके लिये परम पुण्यमय 'ॐ' इस एकाक्षर मन्त्रका जप करे। उसीका अध्ययन करे। अब उसके स्वरूपका वर्णन सुनो। अकार, उकार और मकार-ये जो तीन अक्षर हैं, ये ही तीन मात्राएँ हैं। ये क्रमश: सात्त्विक, राजस और तामस हैं इनके सिवा एक अर्द्धमात्रा भी है जो अनुस्वार या बिन्दुके रूपमें इन सबके ऊपर स्थित है। वह अर्द्धमात्रा निर्गुण है। योगी पुरुषोंको ही उसका ज्ञान हो पाता है। उसका उच्चारण गान्धार स्वरसे होता है, इसलिये उसे 'गान्धारी' भी कहते हैं। उसका स्पर्श चींटीकी गतिके समान होता है। प्रयोग करनेपर वह मस्तक-स्थानमें दृष्टिगोचर होती है। जैसे ॐकार उच्चारण किया जानेपर मस्तकके प्रति गमन करता है, उसी प्रकार ॐकारमय योगी अक्षरब्रह्ममें मिलकर अक्षररूप हो जाता है। प्रणव (ॐकार) धनुष है, आत्मा बाण है और ब्रह्म वेधनेयोग्य उत्तम लक्ष्य है। उस लक्ष्यको सावधानीके साथ वेधना चाहिये और बाणकी ही भाँति लक्ष्यमें प्रवेश करके तन्मय हो जाना चाहिये। यह ॐकार ही तीनों वेद, तीनों लोक, तीनों अग्नि, ब्रह्मा-विष्णु तथा महादेव एवं ऋक्-साम और यजुर्वेद है। इस ॐकारमें वस्तुतः साढ़े तीन मात्राएँ जाननी चाहिये। उनके चिन्तनमें लगा हुआ योगी उन्हींमें लयको प्राप्त होता है। अकार भूर्लोक, उकार भुवर्लोक और व्यञ्जनरूप मकार स्वर्लोक कहलाता है। पहली मात्रा व्यक्त, दूसरी अव्यक्त, तीसरी चिच्छक्ति तथा चौथी अर्द्धमात्रा परमपद कहलाती है। इसी क्रमसे इन मात्राओंको योगकी भूमि समझना चाहिये। ॐकारके उच्चारणसे सम्पूर्ण सत् और असत्का ग्रहण हो जाता है। पहली मात्रा ह्रस्व, दूसरी दीर्घ और तीसरी प्लुत है, किन्तु अर्द्धमात्रा वाणीका विषय नहीं है। इस प्रकार यह ॐकार नामक अक्षर परब्रह्मस्वरूप है। जो मनुष्य इसे भलीभाँति जानता अथवा इसका ध्यान करता है, वह संसार-चक्रका त्याग करके त्रिविध बन्धनोंसे मुक्त हो परब्रह्म परमात्मामें लीन हो जाता है।*

* तत्प्राप्तये महत् पुण्यमोमित्येकाक्षरं जपेत्।
तदेवाध्ययनं तस्य स्वरूपं श्रृण्वतः परम् ॥
अकारश्च तथोकारो मकारश्चाक्षरत्रयम्।
एता एव त्रयो मात्राः सात्त्वराजसतामसाः॥
निर्गुणा योगिगम्यान्या चार्द्धमात्रोर्ध्वसंस्थिता।
गान्धारीति च विज्ञेया गान्धारस्वरसंश्रया।
पिपीलिकागतिस्पर्शा प्रयुक्ता मूर्ध्नि लक्ष्यते ॥
यथा प्रयुक्त आङ्कारः प्रतिनिर्याति मूर्द्धनि।
तथोङ्कारमयो योगी त्वक्षरे त्वक्षरो भवेत्॥
प्रणवो धनुः शरो ह्यात्मा ब्रह्म वेध्यमनुत्तमम्।
अप्रमत्तेन वेद्धव्यं शरवत्तन्मयो भवेत् ॥
ओमित्येतत् त्रयो वेदास्त्रयो लोकास्त्रयोऽग्नयः।
विष्णुर्ब्रह्मा हरश्चैव ऋक्सामानि यजूंषि च ॥
मात्राः सार्धश्च तिस्रश्च विज्ञेयाः परमार्थतः।
तत्र युक्तस्तु यो योगी स तल्लयमवाप्नुयात्॥
अकारस्त्वथ भूर्लोक उकारश्चोच्यते भुवः।
सव्यञ्जनो मकारश्च स्वर्लोकः परिकल्प्यते।
व्यक्ता तु प्रथमा मात्रा द्वितीयाव्यक्तसंज्ञिता।
मात्रा तृतीया चिच्छक्तिरर्द्धमात्रा परं पदम्॥
अनेनैव क्रमेणैता विज्ञेया योगभूमयः।
ओमित्युच्चारणात् सर्वं गृहीतं सदसद्भवेत् ॥
ह्रस्वा तु प्रथमा मात्रा द्वितीया दैर्घ्यसंयुता।
तृतीया च प्लुता(ख्या वचसः सा न गोचरा॥
इत्येतदक्षरं ब्रह्म परमोङ्कारसंज्ञितम्।
यस्तु वेद नरः सम्यक् तथा ध्यायति वा पुनः॥
संसारचक्रमुत्सृज्य त्यक्तत्रिविधबन्धनः।
प्राप्नोति ब्रह्माणि लयं परमे परमात्मनि॥
(४२। ३-१५)

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    अनुक्रम

  1. वपु को दुर्वासा का श्राप
  2. सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
  3. धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
  4. राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
  5. पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
  6. जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
  7. जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
  8. पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
  9. दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
  10. दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
  11. अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
  12. पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
  13. तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
  14. ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
  15. मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
  16. मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
  17. श्राद्ध-कर्म का वर्णन
  18. श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
  19. त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
  20. सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
  21. योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
  22. योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
  23. अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
  24. मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
  25. एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
  26. प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
  27. स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
  28. दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
  29. जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
  30. श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
  31. भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
  32. भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
  33. स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
  34. पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
  35. राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
  36. तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
  37. रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
  38. चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
  39. वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
  40. सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
  41. मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
  42. देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
  43. सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
  44. इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
  45. देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
  46. धूम्रलोचन-वध
  47. चण्ड और मुण्ड का वध
  48. रक्तबीज-वध
  49. निशुम्भ-वध
  50. शुम्भ-वध
  51. देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
  52. देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
  53. सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
  54. नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
  55. रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
  56. भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
  57. सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
  58. अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
  59. सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
  60. दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
  61. वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
  62. राजा खनित्रकी कथा
  63. क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
  64. राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
  65. श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य

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