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गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण

मार्कण्डेय पुराण

गीताप्रेस

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :294
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1196
आईएसबीएन :81-293-0153-9

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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...

जिसका काल निकट आ गया है, वह मनुष्य जिनके सामने सदा विनीत रहता था, जो लोग उसके परम पूजनीय थे, उन्हींकी अवहेलना और निन्दा करता है। वह देवताओंकी पूजा नहीं करता। बड़े-बूढ़ों, गुरुजनों तथा ब्राह्मणोंकी निन्दा करता है, माता-पिता तथा दामादका सत्कार नहीं करता। इतना ही नहीं, वह योगियों, ज्ञानी विद्वानों तथा अन्य महात्मा पुरुषोंके आदर-सत्कारसे भी मुँह मोड लेता है। बुद्धिमान् पुरुषोंको मृत्युके इन लक्षणोंकी जानकारी रखनी चाहिये। राजन्! योगी पुरुषोंको उचित है कि वे सदा यत्नपूर्वक इन अरिष्टोंपर दृष्टि रखें; क्योंकि ये वर्षके अन्तमें तथा दिन-रातके भीतर भी फल देनेवाले होते हैं। राजन्! इनके विशद फलोंको भलीभाँति देखना चाहिये और मन- ही-मन विचार करके उस समयके अनुसार कार्य करना चाहिये। मृत्युकालको जान लेनेपर योगी किसी निर्भय स्थानमें बैठकर योगाभ्यासमें प्रवृत्त हो जाय, जिससे उसका वह समय निष्फल न जाने पाये। अरिष्ट देखकर योगी मृत्युका भय छोड़ दे और उसके स्वभावका विचार करके जितने समयमें वह आनेवाली हो, उतने समयके प्रत्येक भागमें योगी योग-साधनमें लगा रहे। दिनके पूर्वाह्न, मध्याह्न तथा अपराह्नमें अथवा रात्रिके जिस भागमें अरिष्टका दर्शन हो, तभीसे लेकर जबतक मृत्यु न आवे तबतक योगमें लगा रहे। तदनन्तर सारा भय छोड़कर जितात्मा पुरुष उस कालपर विजय प्राप्त करके उसी स्थानपर या और कहीं-जहाँ भी अपना चित्त स्थिर हो सके, योगमें संलग्न हो जाय और तीनों गुणोंको जीतकर परमात्मामें तन्मय हो चिद्वृत्तिका भी त्याग कर दे। यों करनेसे वह उस इन्द्रियातीत परम निर्वाणस्वरूप ब्रह्मको प्राप्त होता है, जो न तो बुद्धिका विषय है और न वाणी ही जिसका वर्णन कर सकती है। अलर्क! इन सब बातोंका मैंने तुमसे यथार्थ वर्णन किया है; अब तुम जिस प्रकार ब्रह्मको प्राप्त हो सकोगे, वह संक्षेपमें सुनो।

जैसे चन्द्रमाका संयोग पाकर ही चन्द्रकान्तमणि जलकी सृष्टि करती है, उनका संयोग पाये बिना नहीं, यही उपमा योगीके लिये भी है। योगी भी योगयुक्त होकर ही सिद्धि लाभ कर सकता है, अन्यथा नहीं। जैसे सूर्यकी किरणोंका संयोग पाकर ही सूर्यकान्तमणि आग पैदा करती है, अकेली रहकर नहीं, यही उपमा योगीके लिये भी है। उसे योगका आश्रय कभी नहीं छोड़ना चाहिये। जैसे चींटी, चूहा, नेवला, छिपकली और गौरैया-ये सब घरमें गृहस्वामीकी ही भाँति रहते हैं और घर गिर जानेपर अन्यत्र चल देते हैं, किन्तु घरके गिरनेका दुःख केवल स्वामीको ही होता है, उन सबोंको उसके लिये कुछ भी कष्ट नहीं होता, योगकी सिद्धिके लिये भी यही उपमा है। अर्थात् योगीको अपने गृह, वैभव और शरीर आदिके प्रति तनिक भी ममता नहीं रखनी चाहिये। हरिनके बच्चेके मस्तकपर जब सींग उगने लगता है, तब पहले उसका अग्रभाग तिलके समान दिखायी देता है। फिर वह उस हरिनके साथ-ही-साथ बढ़ता है। इस दृष्टान्तपर विचार करनेसे योगी सिद्धिको प्राप्त होता है। अर्थात् उसे भी धीरे-धीरे अपनी योगसाधना बढ़ानी चाहिये। जैसे मनुष्य रोगसे पीड़ित होनेपर भी अपनी इन्द्रियोंसे काम लेता ही है, उसी प्रकार योगी बुद्धि आदि परकीय साधनोंसे, जो आत्मासे सर्वथा भिन्न हैं, परम पुरुषार्थका साधन करे।

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    अनुक्रम

  1. वपु को दुर्वासा का श्राप
  2. सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
  3. धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
  4. राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
  5. पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
  6. जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
  7. जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
  8. पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
  9. दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
  10. दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
  11. अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
  12. पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
  13. तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
  14. ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
  15. मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
  16. मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
  17. श्राद्ध-कर्म का वर्णन
  18. श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
  19. त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
  20. सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
  21. योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
  22. योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
  23. अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
  24. मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
  25. एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
  26. प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
  27. स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
  28. दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
  29. जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
  30. श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
  31. भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
  32. भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
  33. स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
  34. पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
  35. राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
  36. तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
  37. रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
  38. चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
  39. वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
  40. सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
  41. मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
  42. देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
  43. सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
  44. इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
  45. देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
  46. धूम्रलोचन-वध
  47. चण्ड और मुण्ड का वध
  48. रक्तबीज-वध
  49. निशुम्भ-वध
  50. शुम्भ-वध
  51. देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
  52. देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
  53. सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
  54. नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
  55. रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
  56. भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
  57. सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
  58. अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
  59. सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
  60. दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
  61. वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
  62. राजा खनित्रकी कथा
  63. क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
  64. राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
  65. श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य

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