गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
अब मनुष्य-वर्ष-गणनाके अनुसार मन्वन्तरका मान सुनो। पूरे तीस करोड़ सरसठ लाख और बीस हजार वर्षोंका एक मन्वन्तर माना गया है। देवताओंके वर्षसे एक मन्वन्तरमें आठ लाख, बावन हजार वर्ष होते हैं। इस कालको चौदह गुना करनेपर ब्रह्माका एक दिन होता है। इसके अन्तमें विद्वानोंने नैमित्तिक प्रलयका होना बतलाया है। उसमें भूर्लोक, भुवर्लोक और स्वर्लोक जलकर नष्ट हो जाते हैं। महर्लोक बच जाता है; किन्तु नीचेके लोकोंके जलनेसे वहाँ इतना ताप पहुँचता है कि उस लोकके निवासी जनलोकमें चले जाते हैं। फिर तीनों लोक एक महासमुद्रके गर्भमें छिप जाते हैं। ब्रह्माकी रात आ जाती है, इसलिये वे उसमें शयन करते हैं। ब्रह्माके दिनके बराबर ही उनकी रात भी होती है। उनके बीतनेपर फिर सृष्टिका क्रम चालू होता है। इस प्रकार क्रमशः ब्रह्माका एक वर्ष बीतता है और पूरे सौ वर्षतक उनका जीवन रहता है। उनके सौ वर्षको एक 'पर' कहते हैं। उसमेंसे पचास वर्षोंकी 'परार्द्ध' संज्ञा है। इस तरह ब्रह्माका एक परार्द्ध बीत चुका है। उसके अन्तमें पाद्म नामसे विख्यात महाकल्प हुआ था। ब्रह्मन् ! अब उनका दूसरा परार्द्ध चल रहा है। इसमें यह वाराह कल्प प्रथम कल्प है।
क्रौष्टुकि बोले- सृष्टिके आदिकर्ता तथा प्रजापतियोंके स्वामी भगवान् ब्रह्माजीने जिस प्रकार प्रजाको उत्पन्न किया, उसका मेरे लिये विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिये।
मार्कण्डेयजीने कहा- ब्रह्मन्! पाद्म कल्पके अन्तमें जो प्रलय हुआ था, उसके बाद रात्रि बीतनेपर जब सत्त्वगुणके उत्कर्षसे युक्त श्रीविष्णुस्वरूप ब्रह्माजी सोकर उठे, उस समय उन्होंने संसारको शून्य देखा। जगत् की उत्पत्ति और संहार करनेवाले ब्रह्मस्वरूप भगवान् नारायणके विषयमें विद्वान् पुरुष यह श्लोक कहा करते हैं-
आपो नारा इति प्रोक्ता आपो वै नरसूनवः।
तासु शेते स यस्माच्च तेन नारायणः स्मृतः॥
'जल नरसे प्रकट हुआ है, इसलिये वह नार कहलाता है। भगवान् उसमें सोते हैं-भगवान् का वह अयन है, इसलिये वे नारायण कहे गये हैं।'
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- धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
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- पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
- तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
- ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
- मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
- मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
- श्राद्ध-कर्म का वर्णन
- श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
- त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
- सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
- अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
- प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
- स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
- जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
- श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
- भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
- भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
- स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
- पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
- राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
- तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
- रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
- चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
- वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
- सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
- मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
- देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
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- इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
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- धूम्रलोचन-वध
- चण्ड और मुण्ड का वध
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- निशुम्भ-वध
- शुम्भ-वध
- देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
- देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
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- नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
- रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
- भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
- सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
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- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
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- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य