गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
तदनन्तर प्रजावर्गने अपने रहनेके लिये पुर, खेट, द्रोणीमुख, शाखा-नगर, खर्वट, द्रमी आदिका निर्माण किया। उन सबमें ग्राम, गोशाला आदिकी व्यवस्था करके वहाँ पृथक्-पृथक् निवास-स्थान बनवाये। जिसके चारों ओर ऊँची चहारदीवारी हो, जो खाइयोंसे घिरा हो, जिसकी लंबाई दो कोस और चौड़ाई उसका आठवाँ भाग हो, वह पुर कहलाता है। उसके पूर्व और उत्तरमें जलप्रवाहका होना उत्तम माना गया है। वहाँसे बाहर निकलनेके लिये शुद्ध बाँसका पुल बना होना चाहिये। जिसकी लंबाई-चौड़ाई पुरकी अपेक्षा आधी हो, वह खेट कहलाता है और जो पुरके चौथाई हिस्सेके बराबर हो, उसे खर्वट कहते हैं। जिसकी लंबाई-चौड़ाई पुरके आठवें हिस्सेके बराबर हो, वह द्रोणीमुख कहलाता है। जहाँ चहारदीवारी और खाई नहीं है, उस पुरको खर्वट कहते हैं। जहाँ मन्त्री, सामन्त तथा भोगके बहुत-से सामान हों, वह शाखानगर कहलाता है। जहाँ अधिकांश शूद्र हों, अपनी समृद्धिसे युक्त किसान रहते हों, जो खेतों और उपभोगयोग्य भूमि (बाग-बगीचों) के बीचमें बसा हो, उसका नाम गाँव है। जहाँ किसी कार्यके लिये मनुष्य अन्य नगर आदिसे आकर बसते हों, उसको बस्ती कहते हैं। जहाँ अधिकांश दुष्टोंका निवास हो, जहाँके रहनेवाले अपने पास खेत न होनेपर भी दूसरेकी भूमिपर अधिकार जमाते और भोगते हैं, वह गाँव द्रमीके नामसे पुकारा जाता है। वहाँ प्रायः वे ही लोग निवास करते हैं, जो राजाके प्रिय हों। जहाँ ग्वाले अपने बर्तन-भाँड़े गाड़ियोंपर लादकर रखते हों, बिना बाजारके ही गोरस मिलता हो, गायोंका समूह रहता हो, जहाँ इच्छानुसार भूमि रहनेके लिये सुलभ हो, उस स्थानका नाम घोष है।
इस प्रकार नगर आदिका निर्माण करके प्रजाने अपने रहनेके लिये घर बनाये। वे घर इस उद्देश्यसे बनाये गये थे कि वहाँ शीत-उष्ण आदि द्वन्द्वोंसे रक्षा हो सके। जैसे पहले उनके घरके आकारके वृक्ष होते थे और वहाँ उन्हें जैसी सुविधाएँ प्राप्त होती थीं, उन सबका स्मरण करके उन्होंने घर बनाये। जैसे वृक्षकी शाखाएँ एकके बाद दूसरी तथा छोटी-बड़ी, ऊँची-नीची होती हैं, उसी प्रकार उन्होंने अनेक प्रकारकी शालाएँ बनायीं। द्विजश्रेष्ठ! पूर्वकालमें जो कल्पवृक्षकी शाखाएँ थीं, वे ही उस समय प्रजावर्गके घरों में शाला बनानेके काममें आयीं।
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- श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
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- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
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- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
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- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
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