गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
दक्षने प्रसूतिके गर्भसे चौबीस कन्याएँ उत्पन्न की; उनके नाम ये हैं, सुनो- श्रद्धा, लक्ष्मी, धृति, तुष्टि, पुष्टि, मेधा, क्रिया, बुद्धि, लज्जा, वपु, शान्ति, सिद्धि तथा तेरहवीं कीर्ति। इन सबको धर्मने अपनी पत्नीके रूपमें ग्रहण किया। इनसे शेष जो ग्यारह छोटी कन्याएँ थीं, उनके नाम इस प्रकार हैं-ख्याति, सती, सम्भूति, स्मृति, प्रीति, क्षमा, संनति, ऊर्जा, अनसूया, स्वाहा और स्वधा। इन सबको क्रमशः भृगु, महादेवजी, मरीचि, अङ्गिरा, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु, वसिष्ठ, अत्रि, अग्नि और पितरोंने ग्रहण किया। श्रद्धाने कामको, लक्ष्मीने दर्पको, धृतिने नियमको, तुष्टिने संतोष और पुष्टिने लोभको उत्पन्न किया। मेधासे श्रुतका, क्रियासे दण्ड, नय और विनयका, बुद्धिसे बोधका, लज्जासे विनयका, वपुसे व्यवसायका, शान्तिसे क्षेमका, सिद्धिसे सुखका और कीर्तिसे यशका जन्म हुआ। ये सभी धर्मके पुत्र हैं।
कामसे उसकी पत्नी रतिने हर्ष नामक पुत्र उत्पन्न किया, जो धर्मका पौत्र कहलाया। अधर्मकी स्त्री हिंसा थी। उसके गर्भसे अनृत नामक पुत्र और निर्ऋति नामवाली कन्या उत्पन्न हुई। फिर इन दोनोंसे दो पुत्रों तथा दो कन्याओंका जन्म हुआ। पुत्रोंके नाम थे नरक और भय तथा कन्याओंके नाम थे माया और वेदना। ये उनकी पत्नियाँ हुईं। इनमें भयकी स्त्री मायाने सब प्राणियोंका संहार करनेवाले 'मृत्यु' नामक पुत्रको उत्पन्न किया और वेदनाने नरकके संसर्गसे दु:ख नामक पुत्रको जन्म दिया। मृत्युसे व्याधि, जरा, शोक, तृष्णा और क्रोध उत्पन्न हुए। ये सब अधर्मरूप हैं और दुःखके हेतु बतलाये जाते हैं। इनके स्त्री और पुत्र नहीं हैं। ये सभी ऊर्ध्वरेता हैं।
अलक्ष्मी के चौदह पुत्र हैं, जिनमें तेरह तो क्रमशः दस इन्द्रिय, मन, बुद्धि और अहङ्कारमें पृथक्-पृथक् रहते हैं। चौदहवेंका नाम दुःसह है, वह मनुष्योंके गृहोंमें निवास करता है। वह भूखसे दुर्बल, नीचा मुख किये, नंग-धडंग और चिथड़ा लपेटे रहता है; उसकी आवाज कौएके समान है। जब ब्रह्माजीने उसे उत्पन्न किया, तब वह सबको खा जानेके लिये उद्यत हुआ। वह तमोगुणका भंडार था और बड़ी-बड़ी दाढ़ोंके कारण अत्यन्त विकराल जान पड़ता था। उसका मुँह फैला हुआ था, इससे वह और भी भयंकर जान पड़ता था। उसको आहारके लिये उत्सुक देख लोकपितामह ब्रह्माजीने कहा- 'दुःसह! तुझे इस संसारका भक्षण नहीं करना चाहिये। तू अपना क्रोध शान्त कर। रजोगुणकी कला त्याग और इस तामसी वृत्तिको भी छोड़ दे।'
दुःसहने कहा- जगदीश्वर! मैं भूखसे दुर्बल हो रहा हूँ और प्यास भी मुझे जोरसे सता रही है। नाथ! बताइये-मुझे कैसे तृप्ति हो, मैं किस तरह बलवान् बनूँ? तथा मेरा निवास-स्थान कौन है, जहाँ मैं सुखसे रह सकूँ?
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- वपु को दुर्वासा का श्राप
- सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
- धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
- राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
- पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
- जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
- जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
- पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
- दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
- दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
- अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
- पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
- तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
- ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
- मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
- मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
- श्राद्ध-कर्म का वर्णन
- श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
- त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
- सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
- अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
- प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
- स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
- जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
- श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
- भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
- भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
- स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
- पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
- राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
- तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
- रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
- चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
- वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
- सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
- मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
- देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
- सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
- इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
- देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
- धूम्रलोचन-वध
- चण्ड और मुण्ड का वध
- रक्तबीज-वध
- निशुम्भ-वध
- शुम्भ-वध
- देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
- देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
- सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
- नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
- रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
- भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
- सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
- अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
- दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
- राजा खनित्रकी कथा
- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य