गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
अब पूर्वके देशोंका वर्णन सुनो-अभ्रारक, मुद्गरक, अन्तर्गिरि, बहिर्गिरि, प्लवङ्ग, रङ्गेय, मालद, मलवर्तिक, ब्राह्मोत्तर, प्रविजय, भार्गव, ज्ञेयमल्लक, प्राग्ज्योतिष, मद्र, विदेह (मिथिला), ताम्रलिप्तक, मल्ल, मगध और गोमन्त-ये पूर्व दिशाके जनपद हैं। अब दक्षिण दिशाके जनपद बतलाये जाते हैं। पाण्ड्य, केरल, चोल, कुन्त्य, गोलाङ्गुल, शैलूष, मूषिक, कुसुम, वनवासक, महाराष्ट्र, माहिषिक, कलिङ्ग, आभीर, वैशिक्य, आटव्य, शबर, पुलिन्द, विन्ध्यमालेय, वैदर्भ, दण्डक, पौरिक, मौलिक, अश्मक, भोगवर्धन, नैषिक, कुन्तल, आन्ध्र, उद्भिद, वनदारक-ये सभी दक्षिणप्रदेशके जनपद हैं। अब अपरान्त देशोंका वर्णन सुनो। सूर्पारक, कालिबल, दुर्ग, अनीकट, पुलिन्द, सुमीन, रूपप, श्वापद, कुरुमिन, कठाक्षर, कारसमर, लोहजङ्घ, वाजेय, राजभद्रक, नासिक्याव, नर्मदाके उत्तरके देश, भीरुकच्छ माहेय, सारस्वत, काश्मीर, सुराष्ट्र, आवन्त्य और अर्बुद-ये अपरान्त-प्रदेश हैं। अब विन्ध्यनिवासियोंके देश बतलाये जाते हैं। सरज, करूष, केरल, उत्कल, उत्तमर्ण, दशार्ण, भोज्य, किष्किन्धक, तोशल, कोसल, त्रैपुर, वैदिश, तुम्बुर, तुम्बुल, पटु नैषध, अन्नज, तुष्टिकार, वीरहोत्र और अवन्ति- ये सभी जनपद विन्ध्याचलकी घाटियोंमें बसे हैं।
अब पर्वतीय देशोंका वर्णन किया जाता है- नीहार, हंसमार्ग, कुरु, गुर्गण, खस, कुन्तप्रावरण, ऊर्ण, दार्व, कृत्रक, त्रिगर्त, मालव, किरात और तामस। ये पर्वतोंके आश्रयमें बसे हैं। इतने देशोंसे परिपूर्ण यह भारतवर्ष है। इसमें चारों दिशाओंके देशोंकी स्थिति है। इसमें सत्ययुग, त्रेता, द्वापर और कलि-इन चारों युगोंकी व्यवस्था है।
भारतवर्षके दक्षिण, पश्चिम तथा पूर्वमें महासागर है और उत्तरकी ओर धनुषकी प्रत्यञ्चाके समान हिमालय पर्वतकी स्थिति है। यह भारतवर्ष सब प्रकारकी उन्नतिका बीज है। यहाँ शुभकर्म करनेसे ब्रह्मपद, इन्द्रपद, देवलोक और मरुद्रणोंका स्थान भी मिलता है। इसी प्रकार यहाँ निन्दित कर्म करनेसे मनुष्यको मृग, पशु, सर्प तथा स्थावरोंकी योनि भी मिल सकती है। ब्रह्मन्! इस जगत् में भारतवर्षके सिवा दूसरा कोई देश कर्मभूमि नहीं है। ब्रह्मर्षे! देवताओंके मनमें भी सदा यह अभिलाषा रहा करती है कि 'हम देवयोनिसे भ्रष्ट होनेपर भारतवर्षमें मनुष्यके रूपमें उत्पन्न हों।' उनका कहना है कि 'भारतवर्षके मनुष्य वह कार्य कर सकते हैं, जो देवता और असुरोंके लिये भी असम्भव है; किन्तु खेदकी बात है कि ये मनुष्य कर्मबन्धनमें बँधकर अपने कर्मोंकी ख्याति-अपनी कीर्ति फैलानेको उत्सुक रहते हैं और लेशमात्र सांसारिक सुखके प्रलोभनमें पड़कर नित्य अक्षय सुखकी प्राप्तिके लिये कोई भी कर्म नहीं करते।'
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- वपु को दुर्वासा का श्राप
- सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
- धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
- राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
- पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
- जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
- जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
- पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
- दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
- दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
- अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
- पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
- तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
- ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
- मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
- मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
- श्राद्ध-कर्म का वर्णन
- श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
- त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
- सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
- अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
- प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
- स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
- जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
- श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
- भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
- भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
- स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
- पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
- राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
- तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
- रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
- चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
- वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
- सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
- मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
- देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
- सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
- इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
- देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
- धूम्रलोचन-वध
- चण्ड और मुण्ड का वध
- रक्तबीज-वध
- निशुम्भ-वध
- शुम्भ-वध
- देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
- देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
- सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
- नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
- रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
- भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
- सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
- अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
- दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
- राजा खनित्रकी कथा
- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य