गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
आगन्तुक ब्राह्मण बड़े विद्वान् थे; अत: गृहस्थ ब्राह्मणको उनकी बातोंपर पूर्ण विश्वास हो गया और वे बड़े आदरके साथ बोले-'भगवन्! मुझपर भी कृपा कीजिये और अपने मन्त्रका प्रभाव दिखलाइये। इस पृथ्वीको देखनेकी मेरी बड़ी इच्छा है।' यह सुनकर उदारचित आगन्तुक ब्राह्मणने उन्हें पैरमें लगानेके लिये एक लेप दिया और वे जिस दिशाको जाना चाहते थे, उसे अपने मन्त्रसे अभिमन्त्रित किया। वह लेप अपने पैरोंमें लगाकर ब्राह्मण देवता अनेकों झरनोंसे सुशोभित हिमालय पर्वतको देखनेके लिये गये। उन्होंने सोचा था कि 'मैं आधे दिनमें एक हजार योजन दूर जाऊँगा और शेष आधे दिनमें पुनः घर लौट आऊँगा।' वे हिमालयके शिखरपर पहुँच गये; किन्तु शरीरमें अधिक थकावट नहीं हुई। उन्होंने वहाँकी पर्वतीय भूमिपर पैदल ही विचरना आरम्भ किया। बर्फपर चलनेके कारण उनके पैरोंमें लगा हुआ दिव्य ओषधिका लेप धुल गया। इससे उनकी तीव्र-गति कुण्ठित हो गयी। अब वे इधर- उधर घूमकर हिमालयके अत्यन्त मनोहर शिखरोंका अवलोकन करने लगे। वहाँ सिद्ध और गन्धर्व रहते थे। किन्नरगण विहार करते थे तथा इधर- उधर देवता आदिके क्रीडा-विहारसे वहाँ रमणीयता बहुत बढ़ गयी थी। सैकड़ों दिव्य अप्सराओंसे भरे हुए वहाँके मनोहर शिखरोंका दर्शन करनेसे ब्राह्मणदेवताको तृप्ति नहीं हुई उनके शरीरमें रोमाञ्च हो आया।
फिर दूसरे दिन आनेका विचार करके जब वे घर जानेको उद्यत हुए तो उन्हें अपने पैरोंकी गति कुण्ठित जान पड़ी। वे सोचने लगे-'अहो! यहाँ बर्फके पानीसे मेरे पैरका लेप धुल गया। इधर यह पर्वत अत्यन्त दुर्गम है और अपने घरसे बहुत दूर चला आया हूँ। अब तो घरपर न पहुँच सकनेके कारण मेरे अग्निहोत्र आदि नित्यकर्मकी हानि होना चाहती है। यहाँ रहकर वह सब कैसे करूँगा। यह तो मेरे ऊपर बहुत बड़ा संकट आ रहा है। इस अवस्था यदि मुझे किन्हीं तपस्वी महात्माका दर्शन हो जाता तो घर पहुँचनेके लिये मुझे कोई उपाय बतलाते।'
इस प्रकार विचार करते हुए ब्राह्मण देवता हिमालयपर विचरने लगे। चरणोंकी ओषधिजनित शक्ति नष्ट हो जानेके कारण उन्हें बड़ी चिन्ता हो रही थी। इस प्रकार वहाँ घूमते हुए ब्राह्मणपर एक श्रेष्ठ अप्सराकी दृष्टि पड़ी, जो अपने मनोहर रूपके कारण बड़ी शोभा पा रही थी। उसका नाम वरूथिनी था। उन्हें देखते ही वरूथिनी कामदेवके वशीभूत हो गयी। उन श्रेष्ठ ब्राह्मणके प्रति तत्काल उसका प्रेम हो गया। वह सोचने लगी, 'ये कौन हैं ? इनका रूप तो बड़ा ही मनोहर है। यदि ये मुझे ठुकरा न दें तो मेरा जन्म सफल हो जाय। मैंने बहुत-से देवता, दैत्य, सिद्ध, गन्धर्व और नागोंको देखा है; किन्तु एक भी इन महात्माके समान रूपवान् नहीं है। जिस प्रकार इनमें मेरा अनुराग हो गया है, उसी प्रकार यदि ये भी मुझमें अनुरक्त हो जायँ तो मेरा काम बन जाय। फिर तो मैं यह समझूँगी कि मैंने बहुत बड़े पुण्यका उपार्जन किया है।'
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- धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
- राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
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- जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
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- दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
- दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
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- पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
- तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
- ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
- मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
- मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
- श्राद्ध-कर्म का वर्णन
- श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
- त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
- सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
- अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
- प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
- स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
- जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
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- भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
- भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
- स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
- पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
- राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
- तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
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- चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
- वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
- सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
- मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
- देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
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- इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
- देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
- धूम्रलोचन-वध
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- रक्तबीज-वध
- निशुम्भ-वध
- शुम्भ-वध
- देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
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- भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
- सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
- अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
- दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
- राजा खनित्रकी कथा
- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य