गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
क्रौष्टुकिने कहा-भगवन्! आपने स्वरोचिष् तथा स्वारोचिषके जन्म एवं चरित्रका सब वृत्तान्त विस्तारपूर्वक कह सुनाया। अब सम्पूर्ण भोगोंकी प्राप्ति करानेवाली पद्मिनी विद्याके अधीन जो-जो निधियाँ हैं, उनका विस्तारके साथ वर्णन कीजिये।
मार्कण्डेयजी बोले-ब्रह्मन्! पद्मिनी नामकी जो विद्या है, उसकी अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मीजी हैं। वे सम्पूर्ण निधियोंकी आधार हैं। पद्म, महापद्म, मकर, कच्छप, मुकुन्द, नन्दक, नील तथा शङ्ख- ये आठ निधियाँ हैं। देवताओंकी कृपा तथा साधु- महात्माओंकी सेवासे प्रसन्न होकर जब ये निधियाँ कृपा-दृष्टि करती हैं तो मनुष्यको सदा धन प्राप्त होता है। अब इनके स्वरूपका वर्णन सुनो। पद्म नामक जो प्रथम निधि है, वह सत्त्वगुणका आधार है। उसके प्रभावसे मनुष्य सोने, चाँदी और ताँबे आदि धातुओंका अधिक मात्रामें संग्रह एवं क्रय- विक्रय करता है। इतना ही नहीं, वह यज्ञोंका अनुष्ठान करता, दक्षिणा देता तथा सभामण्डप एवं देवमन्दिर बनवाता है। महापद्म नामकी जो दूसरी निधि है, वह भी सात्त्विक है। उसके आश्रित हुए मनुष्यमें सत्त्वगुणकी प्रधानता होती है। वह पद्मराग आदि मणि, मोती और मूंगा आदिका संग्रह एवं क्रय-विक्रय करता है। योगी पुरुषोंको दान देता और उनके लिये आश्रम बनवाता है तथा स्वयं भी उन्हींके स्वभावका हो जाता है। उसके पुत्र-पौत्र आदि भी उसी स्वभावके होते हैं महापद्मनिधि मनुष्यकी सात पीढ़ियोंतक उसका त्याग नहीं करती। मकर नामकी तीसरी निधि तमोगुणी होती है। उसकी दृष्टि पड़नेपर सुशील मनुष्य भी प्रायः तमोगुणी बन जाता है। वह बाण, खड्ग, ऋष्टि, धनुष, ढाल तथा दंशन करनेवाली वस्तुओंका संग्रह करता, राजाओंके साथ मैत्री जोड़ता, शौर्यसे जीविका चलानेवाले क्षत्रियों तथा उनके प्रेमियोंको धन देता है। अस्त्र-शस्त्रोंके सिवा और किसी वस्तुके क्रय-विक्रयमें उसका मन नहीं लगता। यह निधि एक ही मनुष्यतक सीमित रहती है। उसके पुत्रोंका साथ नहीं देती। वह मनुष्य धनके कारण लुटेरोंके हाथसे अथवा संग्राममें मारा जाता है। कच्छप नामकी जो निधि है, उसकी दृष्टि पड़नेपर भी मनुष्यमें तमोगुणकी प्रधानता होती है। क्योंकि वह भी तामसी निधि है। वह मनुष्य सब व्यवहार पुण्यात्माओंके साथ ही करता है। किन्तु किसीपर विश्वास नहीं करता। जैसे कछुआ अपने सब अङ्गोंको समेट लेता है, उसी प्रकार वह सब ओरसे रत्नोंका संग्रह करके उनकी रक्षाके लिये व्याकुल रहता है। धनके नष्ट हो जानेके भयसे न तो वह दान करता है और उसे अपने उपभोगमें ही लाता है। अपितु उसे पृथ्वीमें गाड़कर रखता है। वह निधि भी एक ही पीढ़ीतक रहती है।
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- सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
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- सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
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- निशुम्भ-वध
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- देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
- देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
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- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
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- राजा खनित्रकी कथा
- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य