गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
महाराज! मेरे घरमें अनेक युवती स्त्रियाँ हैं, जो रूपमें अप्सराओंकी समानता करनेवाली हैं। उनके रहते हुए मनुष्यकी स्त्रियोंमें मेरा अनुराग कैसे हो सकता है।
राजाने कहा-निशाचर! यदि यह ब्राह्मणी न तो तुम्हारे उपभोगके कामकी है न आहारके तो ब्राह्मणके घरमें प्रवेश करके तुमने इसका अपहरण क्यों किया?
राक्षस बोला-राजन्! वह श्रेष्ठ ब्राह्मण वेदमन्त्रोंका ज्ञाता है। मैं जिस किसी यज्ञमें जाता हूँ, रक्षोघ्न मन्त्रोंका पाठ करके वह मुझे दूर भगा देता है। मन्त्रोंके द्वारा उसके उच्चाटन करनेसे हमलोग भूखे रह जाते हैं। ऐसी दशामें हम कहाँ जायँ। प्रायः सभी यज्ञोंमें वह ऋत्विज् बना करता है। इसीलिये हमने उसके सामने यह विघ्न खड़ा किया है, क्योंकि कोई भी पुरुष पत्नीके बिना यज्ञ-कर्म करनेके योग्य नहीं रहता। राजन्! मैं आपका विनीत सेवक हूँ, आपके राज्यकी प्रजा हूँ; अत: आप अपने किसी कार्यके लिये आज्ञा देकर मुझपर कृपा कीजिये।
राजाने कहा-राक्षस! तुम पहले कह चुके हो कि हम मनुष्यके स्वभावको खा जाते हैं; अतः हम तुमसे जो काम कराना चाहते हैं, उसे सुनो। तुम इस ब्राह्मणीकी दुष्टताको भक्षण कर लो, जिससे यह विनयशील हो जाय। इसके बाद इसे इसके घरमें पहुँचा आओ। इतना कर देनेपर मैं समझूँगा कि तुमने अपने घरपर आये हुए मुझ अतिथिका सम्पूर्ण मनोरथ पूर्ण कर दिया।
राजाके यों कहनेपर वह राक्षस अपनी मायासे ब्राह्मणीके शरीरमें प्रवेश कर गया और अपनी शक्तिसे उसके दुष्ट स्वभावको खा गया। फिर तो ब्राह्मणकी पत्नी भयंकर दुष्टतासे मुक्त हो गयी और राजासे बोली-'महाराज! मुझे अपने ही कर्मके फलसे अपने महात्मा स्वामीसे विलग होना पड़ा है। यह निशाचर तो उसमें निमित्तमात्र बना है। न इसका दोष है, न मेरे महात्मा पतिका दोष है; सब दोष मेरा ही है। क्योंकि मनुष्यको अपनी ही करनीका फल भोगना पड़ता है। पूर्वजन्ममें मैंने किसीका वियोग कराया होगा, वह आज मुझपर भी आ पड़ा है। इसमें दूसरेका क्या दोष है।'
राक्षस बोला-राजन्! आपकी आज्ञाके अनुसार मैं इस ब्राह्मणीके इसके स्वामीके घरपर पहुँचा आता हूँ; इसके सिवा और भी यदि मेरे योग्य कोई कार्य हो तो उसके लिये आज्ञा दीजिये।
राजाने कहा-निशाचर! यह कार्य हो जानेपर मैं समझूँगा कि तुमने मेरा सारा कार्य सिद्ध कर दिया। वीर! यदि किसी कार्यके समय मैं तुम्हारा स्मरण करूँ तो तुम मेरे पास आ जाना।
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- वपु को दुर्वासा का श्राप
- सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
- धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
- राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
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- अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
- पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
- तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
- ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
- मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
- मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
- श्राद्ध-कर्म का वर्णन
- श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
- त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
- सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
- अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
- प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
- स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
- जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
- श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
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- भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
- स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
- पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
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- रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
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- वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
- सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
- मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
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- देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
- धूम्रलोचन-वध
- चण्ड और मुण्ड का वध
- रक्तबीज-वध
- निशुम्भ-वध
- शुम्भ-वध
- देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
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- सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
- नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
- रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
- भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
- सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
- अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
- दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
- राजा खनित्रकी कथा
- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य