गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
नागराज कपोतके नन्दा नामकी एक पुत्री तथा मनोरमा नामकी स्त्री है। नन्दाने बहुलाको देखकर सोचा, 'हो-न-हो यह मेरी माताकी सौत बननेवाली है।' यों विचारकर वह उसे अपने घरमें ले गयी और अन्तःपुरमें छिपाकर रख दिया। कपोतने जब-जब नन्दासे बहुलाको माँगा, तब-तब उसने उनको कोई उत्तर नहीं दिया। तब पिताने उसे शाप दे दिया—'जा, तू गूंगी हो जायगी।' इस प्रकार शापग्रस्त होकर नन्दा उसके साथ रहती है। नागराज उसे ले गये और उसकी कन्याने उसे अपने संरक्षणमें रख लिया।
राजा बोले-महामुने! मुझे तो बहुला प्राणोंसे भी बढ़कर प्रिय है; किन्तु वह मेरे प्रति सदा दुष्टताका ही बर्ताव करती है। इसका क्या कारण है? ऋषिने कहा-पाणिग्रहणके समय सूर्य, मंगल और शनैश्चरकी तुम्हारे ऊपर तथा शुक्र और बृहस्पतिकी तुम्हारी पत्नीके ऊपर दृष्टि थी। उस मुहूर्तमें उसपर चन्द्रमा और बुध भी, जो परस्पर शत्रुभाव रखनेवाले हैं, अनुकूल थे और तुम्हारे ऊपर प्रतिकूल। इसीलिये तुम्हें पत्नीकी प्रतिकूलताका विशेष कष्ट सहना पड़ा है। अच्छा, अब जाओ; धर्मपूर्वक पृथ्वीका पालन करो और पत्नीके साथ रहकर सम्पूर्ण धार्मिक क्रियाओंका अनुष्ठान करो।
मार्कण्डेयजी कहते हैं महर्षिके यों कहनेपर राजा उन्हें प्रणाम करके रथपर आरूढ़ हुए और अपने नगरको लौट आये। वहाँ आनेपर उन्होंने उस ब्राह्मणको देखा, जो अपनी शीलवती भार्याके साथ बहुत प्रसन्न था।
ब्राह्मणने कहा-नृपश्रेष्ठ! आप धर्मके ज्ञाता हैं। आपने मेरी पत्नीको लाकर मेरे धर्मकी रक्षा की है। इससे मैं कृतार्थ हो गया।
राजा बोले-द्विज श्रेष्ठ! आप तो अपने धर्मका पालन करके कृतार्थ हो रहे हैं, किन्तु मैं संकटमें पड़ा हूँ; क्योंकि मेरी पत्नी घरमें नहीं है।
ब्राह्मणने कहा-महाराज! यदि आपकी पत्नी जीवित है और व्यभिचारिणी नहीं हुई है तो आप स्त्रीके बिना रहकर पाप क्यों कमा रहे हैं।
राजा बोले-ब्रह्मन्! यदि मैं पत्नीको लाऊँ भी तो वह सदा मेरे प्रतिकूल रहती है; अतः उससे दुःख ही मिलेगा, सुख नहीं। क्योंकि वह मुझसे मैत्री नहीं रखती। आप कोई ऐसा यत्न करें जिससे वह मेरे अधीन हो जाय।
ब्राह्मणने कहा-राजन् ! आपके प्रति रानीका प्रेम होनेके लिये श्रेष्ठ यज्ञ करना उपकारक होगा; अत: मित्रकी कामना रखनेवाले लोग जिसका अनुष्ठान किया करते हैं, वह मित्रविन्दानामक यज्ञ मैं आरम्भ करता हूँ। राजन् ! जिन स्त्री-पुरुषोंमें परस्पर प्रेम न हो, उनमें मित्रविन्दा प्रेम उत्पन्न करती है। इसलिये आपके कार्यकी सिद्धिके उद्देश्यसे मैं उसीका अनुष्ठान करूँगा।
ब्राह्मणके यों कहनेपर राजाने यज्ञकी सब सामग्री एकत्रित करायी और उस श्रेष्ठ ब्राह्मणने मित्रविन्दा-यज्ञका अनुष्ठान आरम्भ किया। उसने राजाकी स्त्रीमें प्रेम उत्पन्न करनेके लिये एक-एक करके सात यज्ञ किये। जब उसे यह निश्चय हो गया कि रानीके हृदयमें राजाके प्रति मित्रभाव जाग्रत् हो गया है, तब उसने राजासे कहा- 'महाराज! अब आप अपनी प्रिय पत्नीको अपने साथ रखिये और उसके साथ उत्तम भोग भोगते हुए श्रद्धापूर्वक यज्ञोंका अनुष्ठान कीजिये।'
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- वपु को दुर्वासा का श्राप
- सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
- धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
- राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
- पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
- जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
- जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
- पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
- दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
- दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
- अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
- पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
- तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
- ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
- मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
- मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
- श्राद्ध-कर्म का वर्णन
- श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
- त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
- सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
- अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
- प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
- स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
- जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
- श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
- भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
- भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
- स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
- पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
- राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
- तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
- रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
- चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
- वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
- सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
- मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
- देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
- सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
- इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
- देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
- धूम्रलोचन-वध
- चण्ड और मुण्ड का वध
- रक्तबीज-वध
- निशुम्भ-वध
- शुम्भ-वध
- देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
- देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
- सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
- नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
- रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
- भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
- सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
- अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
- दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
- राजा खनित्रकी कथा
- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य