गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
मार्कण्डेयजी कहते हैं-ब्रह्मन्! पाँचवें मनुका नाम रैवत था। उनकी उत्पत्तिका वर्णन करता सुनो। पूर्वकालमें ऋतवाक् नामसे प्रसिद्ध एक महर्षि थे। उनके बहुत समयतक कोई पुत्र नहीं हुआ। दीर्घ कालके पश्चात् हुआ भी तो रेवती नक्षत्रके अन्तिम चरणमें उसका जन्म हुआ। उन्होंने बालकके जातकर्म आदि संस्कार विधिपूर्वक सम्पन्न किये। उपनयन आदि भी कराये, किन्तु वह सुशील न हो सका। जबसे उसका जन्म हुआ, तभीसे वे महर्षि भी दीर्घकालव्यापी रोगसे ग्रस्त हो गये। उसकी माता भी कोढ़ आदिसे पीड़ित हो बहुत दुःख उठाने लगी। बालकके पिता अत्यन्त दुःखी होकर सोचने लगे-'यह कैसा अनर्थ प्राप्त हुआ!' उधर उस दुष्टबुद्धिवाले पुत्रने दूसरे मुनिकुमारकी स्त्रीका अपहरण कर लिया। इससे खिन्नचित्त होकर ऋतवाक्ने कहा-'मनुष्योंका बिना पुत्रके रहना अच्छा है; किन्तु कुपुत्रका होना कदापि उत्तम नहीं है। कुपुत्र तो पिता-माताके हृदयको सदा ही सालता रहता है और स्वर्गमें गये हुए पितरोंको भी नरकमें गिरा देता है। वह तो केवल माता-पिताको दुःख देनेके लिये ही होता है। उस पातात्मा पुत्रके जन्मको धिक्कार है। जिनके पुत्र सब लोगोंके प्रिय, परोपकारी, शान्त तथा उत्तम कर्मों में लगे रहनेवाले होते हैं, वे ही धन्य हैं। मुझे इस जन्ममें कुपुत्रके कारण सुख नहीं मिला और परलोकसे विमुख होना पड़ा। कुपुत्रका आश्रय लेनेवाला मेरा यह अधम जन्म केवल नरकमें ले जानेवाला है, उत्तम गतिकी प्राप्ति करानेवाला नहीं।
इस प्रकार अत्यन्त दुष्ट पुत्रके दुराचारोंसे ऋतवाक् मुनिका हृदयका जलने लगा। उन्होंने गर्गमुनिसे इसका कारण पूछा।
ऋतवाक् बोले-महामुने! पूर्वकालमें उत्तम व्रतका पालन करते हुए मैंने सब वेदोंका विधिपूर्वक अध्ययन किया और उन्हें समाप्त करके वैदिक विधिके अनुसार स्त्रीके साथ विवाह किया; फिर स्त्रीको साथ रखकर वेदों और स्मृतियोंमें बताये हुए सभी कर्तव्य कर्मोंका अनुष्ठान किया। आजतक किसी भी क्रियाके अनुष्ठानमें न्यूनता नहीं आने दी। मुने! 'पुम्' नामके नरकसे डरते हुए मैंने गर्भाधानकी विधिसे पुत्रोत्पत्तिका उद्देश्य रखकर स्त्रीके साथ समागम किया है, कामोपभोगके लिये नहीं। यह सब होनेपर भी ऐसे कुपुत्रका जन्म क्यों हुआ? क्या यह मेरे दोषसे अथवा अपने दोषसे उत्पन्न हुआ है, जो अपनी दुष्टतासे हमारे लिये दुःखदायी और बन्धुजनोंके लिये शोककारक हो गया है?
गर्गने कहा-मुनिश्रेष्ठ! तुम्हारा यह पुत्र रेवती नक्षत्रके अन्तिम चरणमें उत्पन्न हुआ है, अतः दूषित समयमें जन्म ग्रहण करनेके कारण यह तुम्हारे लिये दुःखदायी हो गया है।
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- वपु को दुर्वासा का श्राप
- सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
- धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
- राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
- पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
- जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
- जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
- पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
- दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
- दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
- अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
- पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
- तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
- ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
- मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
- मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
- श्राद्ध-कर्म का वर्णन
- श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
- त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
- सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
- अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
- प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
- स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
- जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
- श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
- भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
- भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
- स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
- पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
- राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
- तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
- रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
- चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
- वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
- सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
- मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
- देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
- सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
- इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
- देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
- धूम्रलोचन-वध
- चण्ड और मुण्ड का वध
- रक्तबीज-वध
- निशुम्भ-वध
- शुम्भ-वध
- देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
- देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
- सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
- नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
- रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
- भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
- सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
- अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
- दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
- राजा खनित्रकी कथा
- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य