गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
ऋचस्ते सकला ह्येता यजूंष्येतानि चान्यतः।
सकलानि च सामानि निपतन्ति त्वदङ्गतः॥
ऋङ्मयस्त्वं जगन्नाथ त्वमेव च यजुर्मयः।
यतः साममयश्चैव ततो नाथ त्रयीमयः॥
त्वमेव ब्रह्मणो रूपं परं चापरमेव च।
मूर्त्तामूर्तस्तथा सूक्ष्मः स्थूलरूपस्तथा स्थितः॥
निमेषकाष्ठादिमयः कालरूपः क्षयात्मकः।
प्रसीद स्वेच्छया रूपं स्वतेजःशमनं कुरु॥
ऋग्वेदकी ये सम्पूर्ण ऋचाएँ, दूसरी ओर यजुर्वेदके ये सब मन्त्र तथा सामवेदकी सम्पूर्ण श्रुतियाँ आपके ही अङ्गोंसे प्रकट होती हैं। जगन्नाथ! आप ऋग्वेदमय हैं, आप ही यजुर्वेदमय हैं तथा आप ही सामवेदमय हैं। नाथ! इस प्रकार आप त्रयीमय हैं-तीनों वेद आपके ही स्वरूप हैं। आप ही ब्रह्मके पर और अपर रूप हैं। मूर्त, अमूर्त, स्थूल और सूक्ष्म सभी रूपोंमंस आपकी ही स्थिति है। निमेष, काष्ठा आदि जो कालके छोटे-छोटे विभाग हैं, वे सब आपके ही स्वरूप हैं। आप ही क्षयात्मक (प्रतिक्षण बीतनेवाला) कालरूप हैं। भगवन्! आप प्रसन्न होइये और अपनी इच्छासे ही अपने प्रचण्ड तेजको शान्त कीजिये।
मार्कण्डेयजी कहते हैं-देवताओं और देवर्षियोंके इस प्रकार स्तुति करनेपर तेजोराशि अविनाशी भगवान सूर्यने विश्वकर्माके द्वारा अपने तेजको कम कर दिया। उनका जो ऋग्वेदमय तेज था, उससे पृथ्वीका निर्माण हुआ। यजुर्वेदमय तेजसे धुलोककी रचना हुई और सामवेदमय तेज ही स्वर्गलोकके रूपमें प्रतिष्ठित हुआ। विश्वकर्माने सूर्यके तेजके सोलह भागोंमेंसे पंद्रह भाग छाँट दिये और उनके द्वारा शंकरजीका त्रिशूल, भगवान् विष्णुका चक्र, वसुगणोंके भयंकर शङ्कु अग्निकी शक्ति, कुबेरकी शिबिका तथा अन्यान्य देवता, यक्ष एवं विद्याधरोंके लिये भयंकर अस्त्र- शस्त्र बनाये। भगवान् सूर्य तबसे अपने तेजके सोलहवें भागको धारण करते हैं। तेज कम होनेके बाद वे अश्वका रूप धारण करके उत्तरकुरु नामक देशमें गये और वहाँ उन्होंने घोड़ीके रूपमें संज्ञाको देखा। उन्हें आते देख संज्ञाको पराये पुरुषकी आशङ्का हुई, इसलिये वह अपने पृष्ठभागकी रक्षा करती हुई सामनेकी ओरसे उनके सम्मुख गयी; फिर वहाँ उनके मिलनेपर पहले दोनोंकी नासिकाका संयोग हुआ। इससे अश्वरूपधारिणी संज्ञाके मुखसे दो पुत्र प्रकट हुए, जो नासत्य और दस्र नामसे प्रसिद्ध हुए। फिर वीर्यपातके अनन्तर रेवन्त नामक एक पुत्र उत्पन्न हुआ, जो ढाल, तलवार और कवच धारण किये, बाण और तरकससे सुसज्जित हो घोड़ेपर चढ़ा हुआ ही प्रकट हुआ था।
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- वपु को दुर्वासा का श्राप
- सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
- धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
- राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
- पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
- जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
- जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
- पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
- दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
- दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
- अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
- पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
- तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
- ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
- मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
- मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
- श्राद्ध-कर्म का वर्णन
- श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
- त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
- सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
- अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
- प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
- स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
- जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
- श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
- भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
- भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
- स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
- पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
- राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
- तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
- रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
- चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
- वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
- सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
- मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
- देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
- सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
- इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
- देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
- धूम्रलोचन-वध
- चण्ड और मुण्ड का वध
- रक्तबीज-वध
- निशुम्भ-वध
- शुम्भ-वध
- देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
- देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
- सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
- नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
- रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
- भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
- सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
- अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
- दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
- राजा खनित्रकी कथा
- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य