गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
ततः समस्तदेवानां तेजोराशिसमुद्धवाम्।
तां विलोक्य मुदं प्रापुरमरा महिषार्दिताः॥१९॥
शूलं शूलाद्विनिष्कृष्य ददौ तस्यै पिनाकधृक्।
चक्रं च दत्तवान् कृष्णः समुत्पाद्य स्वचक्रतः॥२०॥
शङ्ख च वरुणः शक्तिं ददौ तस्यै हुताशनः।
मारुतो दत्तवांश्चापं बाणपूर्णे तथेषुधी॥२१॥
वज्रमिन्द्रः समुत्पाद्य कुलिशादमराधिपः।
ददौ तस्यै सहस्राक्षो घण्टामैरावताद् गजात्॥२२॥
कालदण्डाद्यमो दण्डं पाशं चाम्बुपतिर्ददौ।
प्रजापतिश्चाक्षमालां ददौ ब्रह्मा कमण्डलुम्॥२३॥
समस्तरोमकूपेषु निजरश्मीन् दिवाकरः।
कालश्च दत्तवान् खड्गं तस्याश्चर्म च निर्मलम्॥२४॥
क्षीरोदश्चामलं हारमजरे च तथाम्बरे।
चूडामणिं तथा दिव्यं कुण्डले कटकानि च ॥२५॥
अर्धचन्द्रं तथा शुभ्रं केयूरान् सर्वबाहुषु।
नूपुरौ विमलौ तद्वद् ग्रैवेयममनुत्तमम्॥२६॥
अङ्गुलीयकरत्नानि समस्तास्वङ्गुलीषु च।
विश्वकर्मा ददौ तस्यै परशुं चातिनिर्मलम्॥२७॥
अस्त्राण्यनेकरूपाणि तथाभेद्यं च दंशनम्।
अम्लानपङ्कजां मालां शिरस्युरसि चापराम्॥२८॥
अददजलधिस्तस्यै पङ्कज चातिशोभनम्।
हिमवान् वाहनं सिंहं रत्नानि विविधानि च॥२९॥
ददावशून्यं सुरया पानपात्रं धनाधिपः।
शेषश्च सर्वनागेशो महामणिविभूषितम्॥३०॥
नागहारं ददौ तस्यै धत्ते यः पृथिवीमिमाम्।
अन्यैरपि सुरैर्देवी भूषणैरायुधैस्तथा ॥३१॥
सम्मानिता ननादोच्चैः साट्टहासं मुहुर्मुहः।
तस्या नादेन घोरेण कृत्स्नमापूरितं नभः॥३२॥
अमायतातिमहता प्रतिशब्दो महानभूत्।
चुक्षुभुः सकला लोकाः समुद्राश्च चकम्पिरे॥३३॥
चचाल वसुधा चेलुः सकलाश्च महीधराः।
जयेति देवाश्च मुदा तामूचुः सिंहवाहिनीम् ॥३४॥
तुष्टुवुर्मुनयश्चैनां भक्तिनम्रात्ममूर्तयः।
१. कई प्रतियोंमें इसके बाद ततो देवा ददुस्तस्यै स्वानि स्वान्यायुधानि च। ऊचुर्जयजयेत्युच्चैर्जयन्तीं ते जयैषिणः ॥' इतना पाठ अधिक है। २. पा०-ट्य। ३. पा०-ट्य। ४. पा०-तस्यै चर्म। ५. पा०-वाहनाम्।
तदनन्तर समस्त देवताओंके तेज:पुञ्ज से प्रकट हुई देवीको देखकर महिषासुर के सताये हुए देवता बहुत प्रसन्न हुए॥१९॥ पिनाकधारी भगवान् शङ्कर ने अपने शूलसे एक शूल निकालकर उन्हें दिया; फिर भगवान् विष्णुने भी अपने चक्रसे चक्र उत्पन्न करके भगवतीको अर्पण किया॥२०॥ वरुण ने भी शङ्ख भेंट किया, अग्नि ने उन्हें शक्ति दी और वायु ने धनुष तथा बाणसे भरे हुए दो तरकस प्रदान किये॥२१॥ सहस्र नेत्रोंवाले देवराज इन्द्र ने अपने वज्र से उत्पन्न करके दिया और ऐरावत हाथीसे उतारकर एक घण्टा भी प्रदान किया॥२२॥ यमराजने कालदण्डसे दण्ड, वरुणने पाश, प्रजापतिने स्फटिकाक्ष की माला तथा ब्रह्माजी ने कमण्डलु भेंट किया॥ २३ ॥ सूर्यने देवीके समस्त रोम-कूपों में अपनी किरणों का तेज भर दिया। काल ने उन्हें चमकती हुई ढाल और तलवार दी॥ २४ ॥ क्षीरसमुद्र ने उज्ज्वल हार तथा कभी जीर्ण न होनेवाले दो दिव्य वस्त्र भेंट किये। साथ ही उन्होंने दिव्य चूड़ामणि, दो कुण्डल, कड़े, उज्ज्वल अर्धचन्द्र, सब बाहुओंके लिये केयूर, दोनों चरणोंके लिये निर्मल नूपुर, गलेकी सुन्दर हँसली और सब अँगुलियोंमें पहननेके लिये रत्नोंकी बनी अंगूठियाँ भी दीं। विश्वकर्माने उन्हें अत्यन्त निर्मल फरसा भेंट किया॥२५-२७॥ साथ ही अनेक प्रकारके अस्त्र और अभेद्य कवच दिये; इनके सिवा मस्तक और वक्षःस्थलपर धारण करनेके लिये कभी न कुम्हलानेवाले कमलोंकी मालाएँ दीं॥२८॥ जलधिने उन्हें सुन्दर कमलका फूल भेंट किया। हिमालयने सवारीके लिये सिंह तथा भाँति-भाँतिके रत्न समर्पित किये ॥२९॥ धनाध्यक्ष कुबेर ने मधु से भरा पानपात्र दिया तथा सम्पूर्ण नागों के राजा शेष ने, जो इस पृथ्वी को धारण करते हैं, उन्हें बहुमूल्य मणियों से विभूषित नागहार भेंट दिया। इसी प्रकार अन्य देवताओंने भी आभूषण और अस्त्र-शस्त्र देकर देवी का सम्मान किया। तत्पश्चात् उन्होंने बारंबार अट्टहासपूर्वक उच्चस्वर से गर्जना की। उनके भयंकर नाद से सम्पूर्ण आकाश गूंज उठा॥३०-३२॥ देवीका वह अत्यन्त उच्चस्वर से किया हुआ सिंहनाद कहीं समा न सका, आकाश उसके सामने लघु प्रतीत होने लगा। उससे बड़े जोर की प्रतिध्वनि हुई, जिससे सम्पूर्ण विश्वमें हलचल मच गयी और समुद्र काँप उठे॥३३॥ पृथ्वी डोलने लगी और समस्त पर्वत हिलने लगे। उस समय देवताओंने अत्यन्त प्रसन्नताके साथ सिंहवाहिनी भवानीसे कहा-'देवि! तुम्हारी जय हो'॥३४॥ साथ ही महर्षियों ने भक्तिभाव से विनम्र होकर उनका स्तवन किया।
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- वपु को दुर्वासा का श्राप
- सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
- धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
- राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
- पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
- जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
- जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
- पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
- दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
- दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
- अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
- पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
- तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
- ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
- मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
- मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
- श्राद्ध-कर्म का वर्णन
- श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
- त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
- सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
- अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
- प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
- स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
- जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
- श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
- भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
- भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
- स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
- पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
- राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
- तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
- रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
- चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
- वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
- सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
- मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
- देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
- सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
- इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
- देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
- धूम्रलोचन-वध
- चण्ड और मुण्ड का वध
- रक्तबीज-वध
- निशुम्भ-वध
- शुम्भ-वध
- देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
- देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
- सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
- नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
- रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
- भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
- सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
- अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
- दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
- राजा खनित्रकी कथा
- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य