गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
हते तस्मिन्महावीर्ये महिषस्य चमूपतौ।
आजगाम गजारूढश्चामरस्त्रिदशार्दनः॥११॥
सोऽपि शक्तिं मुमोचाथ देव्यास्तामम्बिका द्रुतम्।
हुंकाराभिहतां भूमौ पातयामास निष्प्रभाम्॥१२॥
भग्नां शक्तिं निपतितां दृष्ट्वा क्रोधसमन्वितः।
चिक्षेप चामरः शूलं बाणैस्तदपि साच्छिनत्॥१३॥
ततः सिंहः समुत्पत्य गजकुम्भान्तरे स्थितः।
बाहुयुद्धेन युयुधे तेनोच्चैस्त्रिदशारिणा॥१४॥
युद्ध्यमानौ ततस्तौ तु तस्मान्नागान्महीं गतौ।
युयुधातेऽतिसंरब्धौ प्रहारैरतिदारुणैः॥१५॥
ततो वेगात्खमुत्पत्य निपत्य च मृगारिणा।
करप्रहारेण शिरश्चामरस्य पृथक्कृतम्॥१६॥
उदग्रश्च रणे देव्या शिलावृक्षादिभिर्हतः।
दन्तमुष्टितलैश्चैव करालश्च निपातितः॥१७॥
देवी कुद्धा गदापातैश्चूर्णयामास चोद्धतम्।
वाष्कलं भिन्दिपालेन बाणैस्ताम्रं तथान्धकम्॥१८॥
उग्रास्यमुग्रवीर्यं च तथैव च महाहनुम्।
त्रिनेत्रा च त्रिशूलेन जघान परमेश्वरी॥१९॥
विडालस्यासिना कायात्पातयामास वै शिरः।
दुर्धरं दुमुखं चोभौ शरैर्निन्ये यमक्षयम् ॥२०॥
१. इसके बाद किसी-किसी प्रतिमें-
'कालं च कालदण्डेन कालरात्रिरपातयत्।
उग्रदर्शनमत्युग्रैः खड्गपातैरताडयत्॥
असिनैवासिलोमानमच्छिदत्सा रणोत्सवे।
गणैः सिंहेन देव्या च जयक्ष्वेडाकृतोत्सवैः ॥
- ये दो श्लोक अधिक हैं।'
महिषासुरके सेनापति उस महापराक्रमी चिक्षुर के मारे जानेपर देवताओं को पीड़ा देनेवाला चामर हाथी पर चढ़कर आया। उसने भी देवीके ऊपर शक्ति का प्रहार किया, किन्तु जगदम्बा ने उसे अपने हुंकार से ही आहत एवं निष्प्रभ करके तत्काल पृथ्वीपर गिरा दिया॥११-१२॥ शक्ति को टूटकर गिरी हुई देख चामर को बड़ा क्रोध हुआ। अब उसने शूल चलाया, किन्तु देवीने उसे भी अपने बाणों द्वारा काट डाला॥१३॥ इतनेमें ही देवी का सिंह उछलकर हाथी के मस्तकपर चढ़ बैठा और उस दैत्यके साथ खूब जोर लगाकर बाहुयुद्ध करने लगा॥१४॥ वे दोनों लड़ते-लड़ते हाथी से पृथ्वीपर आ गये और अत्यन्त क्रोध में भरकर एक-दूसरेपर बड़े भयंकर प्रहार करते हुए लड़ने लगे॥१५॥ तदनन्तर सिंह बड़े वेग से आकाश की ओर उछला और उधर से गिरते समय उसने पंजों की मारसे चामर का सिर धड़ से अलग कर दिया॥१६॥ इसी प्रकार उदग्र भी शिला और वृक्ष आदिकी मार खाकर रणभूमिमें देवीके हाथ से मारा गया तथा कराल भी दाँतों, मुक्कों और थप्पड़ों की चोट से धराशायी हो गया॥१७॥ क्रोधमें भरी हुई देवीने गदाकी चोटसे उद्धतका कचूमर निकाल डाला। भिन्दिपालसे वाष्कलको तथा बाणोंसे ताम्र और अन्धक को मौतके घाट उतार दिया॥१८॥ तीन नेत्रोंवाली परमेश्वरीने त्रिशूलसे उग्रास्य, उग्रवीर्य तथा महाहनु नामक दैत्य को मार डाला॥१९॥ तलवार की चोटसे विडाल के मस्तक को धड़ से काट गिराया। दुर्धर और दुर्मुख-इन दोनों को भी अपने बाणों से यमलोक भेज दिया॥२०॥
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